क्यों कहते है?राधा कृपाकटाक्ष(radha kripa kataksh) को राधा कृष्ण के दर्शन कराने वाला स्रोत
श्रीराधाजी की स्तुतियों में श्री राधा कृपाकटाक्ष स्तोत्र( radha kripa kataksh stotra) का स्थान सर्वोपरि है। इसीलिए इसे ‘श्रीराधा कृपाकटाक्ष स्तवराज’ नाम दिया गया है अर्थात् स्तोत्रों का राजा। व्रजभक्तों में इस स्तुति को अत्यन्त सम्मान का स्थान प्राप्त है। यह स्तोत्र बहुत प्राचीन है। भक्तों की ऐसी मान्यता है कि यह स्तोत्र ‘ऊर्ध्वामनायतन्त्र’ से लिया गया है। व्रजवासियों की यह परम प्रिय स्तुति है। इसका गायन वृन्दावन के विभिन्न मन्दिरों में नित्य किया जाता है। इस स्तोत्र के पाठ से साधक नित्यनिकुंजेश्वरि श्रीराधा और उनके प्राणवल्लभ नित्यनिकुंजेश्वर ब्रजेन्द्रनन्दन श्रीकृष्ण की सुर-मुनि दुर्लभ कृपाप्रसाद अनायास ही प्राप्त कर लेता है।
राधा कृपा कटाक्ष शिव की रचना:-
श्री राधा जी की स्तुति श्री राधा कृपा कटाक्ष से की जाती है। इसे भगवान शिव ने राधा जी को प्रसन्न करने के लिये, पार्वती जी को सुनाया था। 4-4 पंक्तियों के 13 अंतरों और 2-2 पंक्तियों के 6 श्लोकों में राधा जी की स्तुति में, उनके श्रृंगार,रूप और करूणा का वर्णन है। इसमें उनसे प्रश्न कर्ता बार-बार पूछता है कि राधा रानी जी अपने भक्त पर कब कृपा करेंगी?
वृंदावन और ब्रज के सभी मंदिरों में, इसी स्रोत से राधा-कृष्ण की आराधना की जाती है। कहते हैं कि पूर्णिमा, अष्टमी, दशमी, एकादशी और त्रयोदशी को राधा कृपा कटाक्ष स्रोत के पाठ से सभी सांसारिक इच्छायें पूरी होती हैं। वहीं राधाकुंड के जल में खड़े होकर, 100 बार राधा कृपा कटाक्ष पढ़ने से राधा जी प्रसन्न होकर स्वयं दर्शन देने आती हैं। कहते हैं कि राधा जी ने अपने कंगन से यह कुंड खोदा था, तभी इसका नाम राधा कुंड पड़ा। राधा कुंड के बगल में ही श्रीकृष्ण कुंड है जो कृष्ण की तरह ही तीन जगह से टेढ़ा है।
उरु, नाभि, हिय कण्ठ तक, राधाकुण्ड मँझार।
अंग डुबाए सलिल में, पढ़ता जो सौ बार।।
हों सब इच्छा पूर्ण, हो वचन सिद्धि तत्काल।
विभव मिले, दे राधिका दर्शन करे निहाल।।
रीझ तुरत देती अतुल वर राधिका कृपाल।
हो जाते सम्मुख प्रकट प्रिय उनके नंदलाल।।
इस स्तोत्र के पाठ की जो फलश्रुति बताई गयी है, उसे अनेक उच्चकोटि के संतों व सच्चे साधकों द्वारा अपने जीवन में अनुभव किया गया है।
‘श्रीराधा श्रीकृष्ण के प्राणों की अधिष्ठात्री देवी हैं। कारण यह है कि परमात्मा श्रीकृष्ण उनके अधीन हैं। वे रासेश्वरी सदा उनके समीप रहती हैं। वे न रहें तो श्रीकृष्ण टिकते ही नहीं।’
गोलोक में श्रीराधा गोपीवेष में रासमण्डल में विराजती हैं। भक्तों पर कृपा करने के लिए ही इन्होंने अवतार धारण किया है। भगवान श्रीकृष्ण के भक्त को दास्य-भक्ति प्रदान करने वाली श्रीराधा ही हैं क्योंकि वे सभी सम्पत्तियों में दास्य-भक्ति को ही श्रेष्ठ मानती हैं। श्रीराधा के अनेकानेक गुणों में एक गुण ‘करुणापूर्णा’ (करुणा से पूर्ण हृदयवाली) है। कृष्णप्रिया श्रीराधा की करुणा की सीमा नहीं है। वे अपने कृपाकटाक्ष से–नयनों की कोरों से निहार भी लेती हैं तो मनुष्य के तीनों तापों का नाश हो जाता हैं। भगवान श्रीकृष्ण के साथ श्रीराधा की नित्य आराधना-उपासना करके मनुष्य सच्चे अर्थ में अपना जीवन सफल कर सकता है।
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