अधिक मास का अर्थ क्या है? और Adhik maas 2023 में कब है ?
सनातन संस्कृति :-
में अधिक मास का बहुत ही खास महत्व होता है। हिंदी महीने में हर तीन वर्षों में एक बार अधिक मास होता है। अधिक मास को कई नाम से प्रसिद्द है। अधिक मास को पुरुषोत्तम मास- मलमास भी कहते है। धर्म ग्रंथों के अनुसार तीन वर्ष में एक बार पुरुषोत्तम मास आता है। इसे अधिक मास भी कहते है। आने वाले 30 दिन बहुत अनमोल है। साथ ही आध्यात्मिक ऊर्जा से परिपूर्ण है और श्री कृष्ण की अनंत कृपा पाने का योग्य अवसर है। क्योंकि इस मास के स्वामी श्री कृष्ण भगवान (विष्णु जी) हैं। इस पल का सदुपयोग आपके जीवन की दिशा और दशा दोनों बदल सकते हैं।
हर साल पितृपक्ष समाप्त होते ही अगले दिन से नवरात्रि शुरू हो जाती है पर इस बार ऐसा नहीं हो रहा है। इस बार पितृपक्ष समाप्त होने के एक महीने बाद नवरात्र शुरू होगा क्योंकि पितृपक्ष के तुरंत बाद इस बार अधिकमास शुरू हो जाएगा। अधिकमास को पुरुषोत्तम मास व मलमास भी कहा जाता है।
अधिक मास(Adhik maas) क्या है ?:-
जिस मास में अमावस्या से अमावस्या के बीच में कोई सूर्य की संक्रान्ति (सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश) न पड़े उसे अधिक मास कहते है। स्वामीरहित होने से यह मास देव-पितर आदि की पूजा तथा मंगल कर्मों के लिए त्याज्य माना गया। ʹमलमासʹ (मलिन मास) कहा गया।
Adhik maas 2023 में कब है?
adhik maas kab hai:- इस वर्ष 18 जुलाई से 16 अगस्त तक अधिक मास है। यह अधिक मास अधिक श्रावण मास है।
यह एक तथ्य है कि सौर वर्ष 365 दिनों और लगभग 06 मिनट का होता है और चंद्र वर्ष 354 दिनों का बनता है। इस प्रकार सौर और चंद्र दोनों वर्षों में 11 दिन, 1 घंटा, 31 मिनट और 12 सेकंड का अंतराल होता है। जैसे-जैसे यह अंतर हर साल बढ़ता है, यह तीन साल से एक महीने तक का हो जाता है। जिसे अधिक मास(Extra-Month) कहते है।
मलमास को पुरुषोत्तम मास नाम किसने दिया ?
adhik maas in hindi स्वामीरहित होने से यह मास देव-पितर आदि की पूजा तथा मंगल कर्मों के लिए त्याज्य माना गया। इससे लोग इसकी घोर निन्दा करने लगे। तब मलमास श्री कृष्ण (भगवान विष्णु) के पास गया और विनती की सब मेरी घोर निंदा करते है नापसंद करते है। प्रभु कुछ ऐसा कीजिये की मेरा सब सम्मान करे। कहते है जब जब जिसने भगवान विष्णु की शरणागति ली है उसको प्रभु ने कभी खली हाथ नहीं लौट्या।
तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहाः “मैं इसे सर्वोपरि – अपने तुल्य करता हूँ। सदगुण, कीर्ति, प्रभाव, षडैश्वर्य, पराक्रम, भक्तों को वरदान देने का सामार्थ्य आदि जितने गुण सम्पन्न हैं, उन सबको मैंने इस मास को सौंप दिया।
अहमेते यथा लोके प्रथितः पुरुषोत्तमः।
तथायमपि लोकेषु प्रथितः पुरुषोत्तमः।।
इन गुणों के कारण जिस प्रकार मैं वेदों, लोकों और शास्त्रों में ʹपुरुषोत्तमʹ नाम से विख्यात हूँ, उसी प्रकार यह मलमास भी भूतल पर ʹपुरुषोत्तमʹ नाम से प्रसिद्ध होगा और मैं स्वयं इसका स्वामी हो गया हूँ।”
इस प्रकार अधिक मास, मलमास ʹपुरुषोत्तम मासʹ के नाम से विख्यात हुआ।
पुरुषोत्तम मास अक्षय फल देने वाला क्यों होता है ?
क्युकी भगवान श्री कृष्ण ने कहा है- इस मास में मेरे उद्देश्य से जो स्नान (ब्राह्ममुहूर्त में उठकर भगवत्स्मरण करते हुए किया गया स्नान), दान, जप, होम, स्वाध्याय, पितृतर्पण तथा देवार्चन किया जाता है, वह सब अक्षय हो जाता है। जो प्रमाद से इस मास को खाली बिता देते हैं, उनका जीवन मनुष्यलोक में दारिद्रय, पुत्रशोक तथा पाप के कीचड़ से निंदित हो जाता है इसमें सन्देह नहीं।
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सुगन्धित चंदन, दीप आदि से लक्ष्मीसहित सनातन भगवान तथा पितामह भीष्म का पूजन करें। घंटा, मृदंग और शंख की ध्वनि के साथ कपूर और चंदन से आरती करें। ये न हों तो रुई की बत्ती से ही आरती कर लें। इससे अनन्त फल की प्राप्ति होती है। चंदन, अक्षत और पुष्पों के साथ ताँबे के पात्र में पानी रखकर भक्ति से प्रातःपूजन के पहले या बाद में अर्घ्य दें। अर्घ्य देते समय भगवान ब्रह्माजी के साथ मेरा स्मरण करके इस मंत्र को बोलें-
देवदेव महादेव प्रलयोत्पत्तिकारक।
गृहाणार्घ्यमिमं देव कृपां कृत्वा ममोपरि।।
स्वयम्भुवे नमस्तुभ्यं ब्रह्मणेઽमिततेजसे।
नमोઽस्तुते श्रियानन्त दयां कुरु ममोपरि।।
ʹहे देवदेव ! हे महादेव ! हे प्रलय और उत्पत्ति करने वाले ! हे देव मुझ पर कृपा करके इस अर्घ्य को ग्रहण कीजिये। तुझ स्वयंभु के लिए नमस्कार तथा तुझ अमिततेज ब्रह्मा के लिए नमस्कार। हे अनंत ! लक्ष्मी जी के साथ आप मुझ पर कृपा करें।
पुरुषोत्तम मास का व्रत दारिद्रय, पुत्रशोक और वैधव्य का नाशक है। इसके व्रत से ब्रह्महत्या आदि सब पाप नष्ट हो जाते हैं।
पुरुषोत्तम मास के आगमन पर जो व्यक्ति श्रद्धा-भक्ति के साथ व्रत, उपवास, पूजा आदि शुभ कर्म करता है, वह निःसन्देह अपने समस्त परिवार के साथ मेरे लोक में पहुँचकर मेरा सान्निध्य प्राप्त करता है।” इस माह में केवल ईश्वर के उद्देश्य से जो जप, सत्संग व सत्कथा-श्रवण, हरिकीर्तन, व्रत, उपवास, स्नान, दान या पूजनादि किये जाते हैं, उनका अक्षय फल होता है
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इस मास में प्रातः स्नान, दान, तप, नियम, धर्म, पुण्यकर्म, व्रत-उपासना तथा निःस्वार्थ नाम जप-गुरुमंत्र जप का अधिक महत्त्व है। इस माह में दीपकों का दान करने से मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। दुःख शोकों का नाश होता है। वंशदीप बढ़ता है, ऊँचा सान्निध्य मिलता है, आयु बढ़ती है।
पुरुषोत्तम महिना के लाभ:-
यह माना जाता है कि इस अवधि के दौरान उपवास रखना 100 यज्ञ या होमा करने के बराबर है जो पूर्ण आनंद, खुशी और शांति की उपलब्धि के लिए एक मार्ग के रूप में कार्य करता है। इस महीने का उद्देश्य दिव्य अनुग्रह और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए देवत्व का प्रचार करना है, खोए हुए स्वास्थ्य और धन को प्राप्त करना, संतान को प्राप्त करना, और अपने जीवन में मुश्किल समय में हम हिम्मत न हरे उसके लिए दिव्य शक्तियों ईश्वर से आशीर्वाद पाने का समय है।
पुरुषोत्तम ग्रंथ:-
पुरुषोत्तम ग्रन्थ इस माह के महत्व और उसकी व्याख्या करने वाली पुस्तक है। इस माह के दौरान मंदिरों में पुरुषोत्तम महात्म्य (पुराण) का पाठ किया जाता है। यह भी माना जाता है कि पुरुषोत्तम महात्म्य को पढ़ने और सुनने से धर्म को प्राप्त किया जा सकता है। और चित को सही तरह एकाग्र किया जा सकता है।
अनुष्ठान:-
पुरषोत्तम माहिना के दौरान, व्रत, यज्ञ, हवन, श्रीमद देवी भागवतम, श्रीमद् भागवत पुराण, श्री विष्णु पुराण, भाव्योत्तार पुराण का पाठ मंदिरों में या संबंधित घरों में भक्तों द्वारा किया जाता है। आध्यात्मिकता के ये कार्य धार्मिक योग्यता में पर्याप्त सुधार लाते हैं और व्यक्तियों में बेहतर जीवन के लिए परिवर्तन लाते हैं। साथ ही, इस महीने के दौरान लोग भगवान विष्णु से आशीर्वाद पाने के लिए नारायण मंदिर जाते हैं।
एहतियाती उपाय:-
ग्रन्थ के अनुसार, जो लोग पूर्ण या आंशिक उपवास कर रहे हैं, उन्हें स्वयं को स्वच्छ और शुद्ध रखना चाहिए, सत्य बोलना चाहिए, धैर्य का अभ्यास करना चाहिए, अलौकिक खाद्य पदार्थों से बचना चाहिए और कर्तव्यनिष्ठा से सभी धार्मिक अनुष्ठान करने चाहिए।
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अधिक मास में वर्जित:-
इस मास में सभी सकाम कर्म एवं सकाम व्रत वर्जित हैं। जैसे – कुएँ, बावली, तालाब और बाग आदि का आरम्भ तथा प्रतिष्ठा, नवविवाहित वधू का प्रवेश, देवताओं का स्थापन (देव प्रतिष्ठा), यज्ञोपवीत संस्कार, विवाह, नामकर्म, मकान बनाना, नये वस्त्र एवं अलंकार पहनना आदि।
दान का महत्व:-
इस महीने में किसी भी ग्रह दशा को यज्ञ और हवन करके नियमित किया जा सकता है। यह माना जाता है कि यह महीना हिंदू धर्म में एक विशेष स्थान रखता है और इसलिए, इस महीने के दौरान ग्रहों के प्रभाव को सुधारने से किसी अन्य महीने के दौरान किए गए प्रदर्शन की तुलना में 10 गुना बेहतर परिणाम मिलते हैं।
पुरुषोत्तम मास के नियम:-
- ब्रह्म मुहूर्त में सुबह 4:00 बजे उठना सबसे पहला नियम है जो कि बहुत महत्वपूर्ण है गुरु मंत्र का अधिक से अधिक जाप करें।
- हमेशा कहा जाता है कि अच्छी सेहत और समृद्धि के लिए हर रोज सूर्योदय से पहले ही बिस्तर छोड़ देना चाहिए लेकिन किन्ही वजहों के चलते यदि आप ऐसा नहीं कर पाते इस पूरे महीने जरूर ऐसा करें सुबह जल्दी उठकर नहाए और घर के मंदिर में पूजा कर सूर्य देव को जल जरूर अर्पित करें।
- यह महीना हर 3 साल में एक बार आता है इसीलिए इस दौरान होने वाले लाभ हम हर साल नहीं कमा सकते। ऐसे में कुछ नियमों का पालन करना चाहिए जिनसे हमारा शरीर भी प्रभावित ना हों सादा भोजन खाएं और यदि संभव हो तो एक वक्त का सिर्फ शाम के समय ही भोजन करें।
- यदि संभव हो तो गौशाला जाए और गाय को हरा चारा खिलाएं यदि ऐसा संभव न हो तो घर में ही गाय की मूर्ति या तस्वीर पूजा घर में रखें और कान्हा जी के साथ उनकी भी पूजा करें।
- ऐसे में कुछ कान्हा या विष्णु भगवान से जुड़ी चीजें जैसे मोर पंख या वैजयंती माला को घर के मंदिर में स्थापित करें। ऐसा करने से ना केवल की कृपा बरसेगी घर के वास्तु दोष भी दूर हो जाएंगे।
- जीवन का समय अनमोल है ये हम सभी जानते है लेकिन जीवन में अच्छे कामो को करना का संकल्प लेना। जीवन को सही सार्थक करने जैसा है। अच्छे कर्म करे।
श्री नारायण मंत्र:-
अगर आपके पास कोई गुरु मंत्र है तो फिर इसका जाप अति उत्तम है अगर कोई मंत्र नहीं है तो इन मंत्रों में से कोई सा भी आप जप सकते हैं। श्री कृष्ण की आराधना कर सकते हैं।
- श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा
- ॐ कृष्णाय नमः
- हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ,हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
- ॐ देविकानंदनाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो कृष्ण प्रचोदयात्
- ॐ श्री कृष्ण शरणम नमः
- ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।
पूरी श्रद्धा के साथ इस महीने भगवान का सुमिरन, मनन, चिंतन और नाम जप कीजिये। आपके ह्रदय के भाव को भगवान समझेंगे। और आप पर कृपा जरूर करेंगे। साथ ही तुलसी पूजन करना न भूले। तुलसी पूजन जरूर करे।
वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।
पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी।।
एतभामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम।
य: पठेत तां च सम्पूज्य सौश्रमेघ फलंलमेता।।
लीप ईयर एवं आश्विन अधिकमास अद्भुत संयोग:-
ये संयोग है कि 2020 में लीप ईयर एवं आश्विन अधिकमास दोनों एक साथ आए हैं। आश्विन का अधिकमास 19 साल पहले 2001 में आया था, लेकिन लीप ईयर के साथ अश्विन में अधिकमास 160 साल पहले 2 सितंबर 1860 को आया था।
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निष्कर्ष:-
जैसा कि हम जानते हैं, प्रत्येक व्यक्ति की आध्यात्मिक शक्ति होती है जिसमें 5 भूत होते हैं – वायु, जल, पृथ्वी, अग्नि और आकाश। ये बुद्धि के रूप में प्रकट होते हैं- मन- अहंकार- इंद्रियां और आत्मा। आध्यात्मिक इकाई के साथ एक भौतिक इकाई को एकजुट करने के लिए ध्यान की आवश्यकता होती है।
पुरुषोत्तम महिना मोक्ष प्राप्त करने के लिए भगवान के साथ हमारे संबंध स्थापित करने का सही समय है। इस महीने का महत्व इस तथ्य में निहित है कि किसी को आत्म-पुनर्मूल्यांकन, आत्म-विकास, आत्म-प्रतिबिंब और आत्म-मूल्यांकन के दायरे में यात्रा करने का मौका मिलता है।
अगर आप पुरुषोत्ताम मास माहात्म्य -अधिक मास की किताब खरीदना चाहते है। और घर बैठकर पढ़ना चाहते है तो आप ये वाली किताब खरीद सकते है। जिसमे 31 अध्याय है और साथ ही में पुरुषोत्ताम मास में होने वाली एकादशी का अनंत पुण्य फल कैसे मिले उसका माहात्म्य।
पुरुषोतम मास माहात्म्य: अधिक मास का सम्पूर्ण फल
ये हम सभी जानते है पुरुषोत्तम मास माहात्म्य का पाठ भी अत्यन्त फलदायी है। अधिक मास में ये सम्पूर्ण फल देने वाला है। इसमें कुल 31 अध्याय है। बहुत ही जल्द हम आपको आगे के अध्याय उपलब्ध करवाएंगे।
पुरुषोतम मास माहात्म्य अध्याय – 1
पुरुषोतम मास माहात्म्य अध्याय – 2
पुरुषोतम मास माहात्म्य अध्याय – 3
पुरुषोतम मास माहात्म्य अध्याय – 4
पुरुषोतम मास माहात्म्य अध्याय – 5
पुरुषोतम मास माहात्म्य अध्याय – 6
पुरुषोतम मास माहात्म्य अध्याय – 9
पुरुषोतम मास माहात्म्य अध्याय – 10
पुरुषोतम मास माहात्म्य अध्याय – 11
पुरुषोतम मास माहात्म्य अध्याय – 12
पुरुषोतम मास माहात्म्य अध्याय – 13
पुरुषोतम मास माहात्म्य अध्याय – 14
पुरुषोतम मास माहात्म्य अध्याय – 15
पुरुषोतम मास माहात्म्य अध्याय – 16
पुरुषोतम मास माहात्म्य अध्याय – 17
पुरुषोतम मास माहात्म्य अध्याय – 18
पुरुषोतम मास माहात्म्य अध्याय – 19
पुरुषोतम मास माहात्म्य अध्याय – 20
पुरुषोतम मास माहात्म्य अध्याय – 21
पुरुषोतम मास माहात्म्य अध्याय – 22
पुरुषोतम मास माहात्म्य अध्याय – 23
पुरुषोतम मास माहात्म्य अध्याय – 24
पुरुषोतम मास माहात्म्य अध्याय – 25
पुरुषोतम मास माहात्म्य अध्याय – 26
पुरुषोतम मास माहात्म्य अध्याय – 27
पुरुषोतम मास माहात्म्य अध्याय – 28
पुरुषोतम मास माहात्म्य अध्याय – 29
पुरुषोतम मास माहात्म्य अध्याय – 30
पुरुषोतम मास माहात्म्य अध्याय – 31
अधिक मास 2020 के सितंबर महीने में है।
अधिक मास को मलमास और पुरुषोत्तम नाम से भी जानते है।
श्री कृष्ण (भगवान विष्णु)
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