हिंदी में श्री गजानन गणेश जी कथा पढ़े-चतुर्थ अवतार
भगवान् श्री गणेश का चतुर्थ अवतार गजानन का है जिसके सम्बन्ध में एक श्लोक मिलता है जो इस प्रकार है –
गजाननः स विज्ञेयः सांख्येभ्यः सिद्धिदायकः ।
लोभासुरप्रहर्ता वै आखुगश्च प्रकीर्तिताः ||
(अर्थ :- भगवान् श्री गणेश का गजानन अवतार सांख्यब्रह्म का धारक है, यह सांख्य योगिओं को सिद्धि देने वाला माना जाता है यह लोभासूर का वध करने वाला तथा मूषक वाहन पर चलने वाला कहा जाता है )
कथा:- एक बार भगवान् कुबेर भगवान् शिव और माँ पार्वती के दर्शन हेतु कैलाश गए वहां कुबेर माँ के सौंदर्य को अपलक निहारते चले गए इससे माता को बहुत क्रोध आया माता को क्रोधित देखकर कुबेर भय के मारे कांपने लगे और उसी वक्त कुबेर के शरीर से एक दैत्य लोभासुर उत्पन्न हुआ । लोभासुर दैत्य था वह अपने गुरु शुक्राचार्य के पास गया और उनसे दैत्यगुरु से दीक्षा प्रदान करने का आग्रह किया शुक्राचार्य ने लोभासुर को अपना शिष्य बना लिया और भगवान् शिव के पंचाक्षरी मंत्र की दीक्षा देकर भगवान् शिव की कृपा प्राप्त करने का आदेश दिया ।
निर्जन वन में जाकर असुर ने भस्म धारण करके भगवान शिव का ध्यान करते हुए पंचाक्षारी मन्त्र का जप करने लगा । वह अन्न -जल का त्याग कर भगवान शंकर की प्रसन्नता के लिये घोर ताप करने लगा ।
उसने सहश्रों वर्षों तक अखण्ड तप किया । उसकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए ।
लोभासुर को भोले भगवान शंकर ने वर देकर उसे तीनों लोंकों में निर्भय कर दिया । भगवान शिव के अमोघ वर से निर्भय लोभासुर ने दैत्यों की विशाल सेना एकत्र कि। उन असुरों के सहयोग से लोभासुर ने पहले पृथ्वी के समस्त राजाओं को जीत लिया । फिर स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया । इन्द्र को पराजित कर उसने अमरावती पर अधिकार कर लिया । पराजित होकर इन्द्र भगवान विष्णु के पास गये तथा उनसे अपनी व्यथा सुनायी ।
भगवान विष्णु असुरों का संहार कने के लिये अपने गरुड़ वाहन पर चढ़कर आये । भयानक संग्राम हुआ । भगवान शंकर के वर से लोभासुर के सामने उनको भी पराजय का मुँह देखना पड़ा । विष्णु तथा अन्य देवताओं के रक्षक महादेव हैं – यह सोच कर लोभासुर ने अपना दूत शिव के पास भेजा । दूत ने कहा ‘आप परम पराक्रमी लोभासुर से युद्ध कीजिये या पराजय स्वीकार कर कैलाश को छोड़ दीजिये । भगवान शंकर ने अपने द्वारा दिये वरदान को स्मरण कर कैलाश को छोड़ दिया । लोभासुर के आनन्द की सीमा न रही ।
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