हिंदी अर्थो के साथ पढ़े कालभैरव अष्टकम्(Kalabhairava Ashtakam)
भैरव का अर्थ है “भयानक” या “आनंदमय”। भैरव को काल भैरव के रूप में भी जाना जाता है, एक हिंदू देवता हैं, वे हिंदू पौराणिक कथाओं में उत्पन्न हुए और हिंदू, बौद्ध और जैन समान रूप से पवित्र हैं। भगवान भैरव भगवान शिव के एक अवतार (अवतार) हैं। भैरव शिव का एक उग्र रूप है। काल भैरव का नाम सुनते ही एक अजीब-सी भय मिश्रित अनुभूति होती है। एक हाथ में ब्रह्माजी का कटा हुआ सिर और अन्य तीनों हाथों में खप्पर, त्रिशूल और डमरू लिए भगवान शिव के इस रुद्र रूप से लोगों को डर भी लगता है, लेकिन ये बड़े ही दयालु-कृपालु और जन का कल्याण करने वाले हैं।
विभिन्न सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए:- उन्हें तांत्रिक और योगियों द्वारा व्यापक रूप से पूजा जाता है। भैरव की पूजा विशेष रूप से छिपी हुई और दृश्यमान शत्रुओं की परेशानी जैसी समस्याओं में सहायक होती है, जीवन में अन्य सभी सुखों की तरह, भैरव की भी लंबी यात्रा शुरू करने से पहले पूजा की जाती है ताकि यह आरामदायक और खतरों से मुक्त हो सके। भगवान भैरव भगवान शिव के मंदिर की रक्षा करते हैं, जिसके कारण उन्हें “कोतवाल” भी कहा जाता है। इसलिए, काल भैरव अष्टकम किसी के अहंकार को रोककर रखने में मदद करता है। वह दयालु है और आसानी से अपने भक्तों को धन और समृद्धि के साथ प्रदान करता है।
भैरव शब्द का अर्थ :-
भैरव शब्द का अर्थ ही होता है भरण-पोषण करने वाला, जो भरण शब्द से बना है। काल भैरव की चर्चा रुद्रयामल तंत्र और जैन आगमों में भी विस्तारपूर्वक की गई है। शास्त्रों के अनुसार कलियुग में काल भैरव की उपासना शीघ्र फल देने वाली होती है। उनके दर्शन मात्र से शनि और राहु जैसे क्रूर ग्रहों का भी कुप्रभाव समाप्त हो जाता है। काल भैरव की सात्त्विक, राजसिक और तामसी तीनों विधियों में उपासना की जाती है।
काल भैरव अष्टकम पढ़ने से क्या होता है ?
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार नियमित रूप से काल भैरव को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद पाने के लिए काल भैरव अष्टकम का जप सबसे शक्तिशाली तरीका है।
सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त करने के लिए आपको सुबह स्नान करने के बाद और भगवान भैरव की मूर्ति या तस्वीर के सामने काल भैरव अष्टकम का पाठ करना चाहिए। आपको सबसे पहले काल भैरव अष्टकम का हिंदी में अर्थ समझना चाहिए ताकि इसका प्रभाव बढ़ सके।
काल भैरव अष्टकम के लाभ:-
भैरव चालीसा स्तोत्र का नियमित जाप करने से मन को शांति मिलती है और आपके जीवन से सभी बुराईयों को दूर रखता है और आपको स्वस्थ, धनी और समृद्ध बनाता है।
काल भैरव अष्टकम का पाठ किसको करना है?
जीवन में जो शत्रुओं से पीड़ित है , लोगों द्वारा धमकी देने और डरने वालो को इस काल भैरव अष्टकम का नियमित रूप से पाठ करना चाहिए।
कालभैरवाष्टकम् श्रीमद् शंकराचार्य द्वारा रचित स्तोत्र है। इसका प्रवाह शिवताण्डव की तरह ही है। कालिकापुराण के अनुसार भैरव शिवजी के गण हैं। इनका वाहन कुत्ता है। किसी भी शक्तिपीठ पर इनकी पूजा और प्रसन्नता के बाद ही देवी की पूजा फलीभूत मानी जाती है।
भैरव की उत्पत्ति:-
शिवमहापुराण के अनुसार मार्गशीर्ष माह की कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को दोपहर के समय भैरव की उत्पत्ति हुई है। इस तिथि को कालभैरव अष्टमी के नाम से जाना जाता है। शास्त्रों में अनेक किंवदन्तियाँ मिलती हैं। कहा जाता है अन्धकासुर नामक दैत्य अपने मद में चूर होकर भगवान् शिव पर आक्रमण कर बैठा, तब शिवजी के रक्त से भैरव की उत्पत्ति हुई थी।
KAAL BHAIRAV ASHTAKAM/काल भैरव अष्टकम्
देवराजसेव्यमानपावनांघ्रिपङ्कजं
व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम्।
नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥1॥
जिनके पवित्र चरण-कमल की सेवा देवराज इन्द्र सदा करते रहते हैं तथा जिन्होंने शिरोभूषण के रूप में चन्द्रमा और सर्प का यज्ञोपवीत धारण किया है। जो दिगम्बर-वेश में हैं एवं नारद आदि योगियों का समूह जिनकी वन्दना करता रहता है, ऐसे काशी नगरीके स्वामी कृपालु कालभैरव की मैं आराधना करता हूँ।।१।।
भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं
नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम्।
कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥2॥
जो करोड़ों सूर्यों के समान दीप्तिमान्, संसार-समुद्र से तारनेवाले, श्रेष्ठ, नीले कण्ठवाले, अभीष्ट वस्तु को देनेवाले, तीन नयनोंवाले, काल के भी महाकाल, कमल के समान नेत्रवाले तथा अक्षमाला और त्रिशूल धारण करनेवाले हैं, उन काशी नगरी के स्वामी अविनाशी कालभैरव की मैं आराधना करता हूँ।।२।।
शूलटङ्कपाशदण्डपाणिमादिकारणं
श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम्।
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥3॥
जिनके शरीर की कान्ति श्यामवर्ण की है तथा जिन्होंने अपने हाथों में शूल, टंक, पाश और दण्ड धारण किया है। जो आदिदेव, अविनाशी और आदिकारण हैं, जो त्रिविध तापोंसे रहित हैं और जिनका पराक्रम महान् है। जो सर्वसमर्थ हैं एवं विचित्र ताण्डव जिनको प्रिय है, ऐसे काशी नगरी के अधीश्वर कालभैरव की मैं आराधना करता हूँ।।३।।
भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं
भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम्।
विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥4॥
जिनका स्वरूप सुन्दर और प्रशंसनीय है, सारा संसार ही जिनका शरीर है, जिनके कटिप्रदेश में सोने की सुन्दर करधनी रुनझुन करती हुई सुशोभित हो रही है, जो भक्तोंके प्रिय एवं स्थिर शिवस्वरूप हैं, ऐसे भुक्ति तथा मुक्ति प्रदान करनेवाले काशी नगरी के अधीश्वर काल भैरव की मैं आराधना करता हूँ।।४।।
धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशकं
कर्मपाशमोचकं सुशर्मदायकं विभुम्।
स्वर्णवर्णशेषपाशशोभिताङ्गमण्डलं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥5॥
जो धर्म-सेतु के पालक एवं अधर्म के नाशक हैं तथा कर्मपाश से छुड़ानेवाले, प्रशस्त कल्याण प्रदान करनेवाले और व्यापक हैं; जिनका सारा अंगमंडल स्वर्ण वर्णवाले शेषनाग से सुशोभित है, उसे काशीनगरी के अधीश्वर कालभैरव की मैं आराधना करता हूँ।।५।।
रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं
नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरंजनम्।
मृत्युदर्पनाशनं करालदंष्ट्रमोक्षणं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥6॥
जिनके चरणयुगल रत्नमयी पादुका (खड़ाऊ) की कान्ति से सुशोभित हो रहे हैं, जो निर्मल (मलरहित-स्वच्छ), अविनाशी, अद्वितीय तथा सभी के इष्ट देवता हैं। मृत्यु के अभिमान को नष्ट करनेवाले हैं तथा काल के भयंकर दाँतों से मोक्ष दिलानेवाले हैं, ऐसे काशी नगरी के अधीश्वर काल भैरव की मैं आराधना करता हूँ।।६।।
अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसंततिं
दृष्टिपातनष्टपापजालमुग्रशासनम्।
अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकाधरं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥7॥
जिनके अट्टहास से ब्रह्माण्डों के समूह विदीर्ण हो जाते हैं, जिनकी कृपामयी दृष्टिपात से पापों के समूह विनष्ट हो जाते हैं, जिनका शासन कठोर है, जो आठों प्रकार का सिद्धियाँ प्रदान करनेवाले तथा कपाल की माला धारण करनेवाले हैं, ऐसे काशी नगरी के अधीश्वर काल भैरव की मैं आराधना करता हूँ।।७।।
भूतसंघनायकं विशालकीर्तिदायकं
काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम्।
नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥8॥
समस्त प्राणी समुदाय के नायक हैं, जो अपने भक्तों को विशाल कीर्ति प्रदान करनेवाले हैं, जो काशी में निवास करने वाले सभी लोगों के पुण्य तथा पापों का शोधन करनेवाले और व्यापक हैं, जो नीतिमार्ग के महान् वेत्ता, पुरातन-से-पुरातन हैं, संसारके स्वामी हैं, ऐसे काशी नगरी के अधीश्वर कालभैरव की मैं आराधना करता हूँ।।८।।
कालभैरवाष्टकं पठन्ति ये मनोहरं
ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनम्।
शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनं
ते प्रयान्ति कालभैरवाङ्घ्रिसन्निधिं ध्रुवम्।।९।।
काल भैरवाष्टकं पठन्ति ये मनोहरं
ज्ञान मुक्ति साधनं विचित्र पुण्य वर्धनम्।
शोक मोह दैन्य लोभ कोप ताप नाशनं
ते प्रयान्ति काल भैरवाङ्घ्रि सन्निधिं ध्रुवम्।।९।।
ज्ञान और मुक्ति प्राप्त करने के साधन रूप, भक्तों के विचित्र पुण्य की वृद्धि करनेवाले, शोक-मोह-दीनता-लोभ-कोप तथा ताप को नष्ट करनेवाले इस मनोहर ‘कालभैरवाष्टक’ का जो लोग पाठ करते हैं, वे निश्चित ही काल भैरव चरणों की निधि प्राप्त कर लेते हैं।।९।।
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