हिंदी में पढ़े श्री धुम्रवर्ण गणेश जी के बारे में
भगवान् श्री गणेश का अष्टम अवतार धूम्रवर्ण श्री गणेश का है जिसके सम्बन्ध में एक श्लोक मिलता है जो इस प्रकार है –
धुम्रवर्णावतारश्चाभिमानासुरनाशकः ।
आखुवाहन एवासौ शिवात्मा तु स उच्येत ||
(भगवान् श्री गणेश का अष्टम अवतार धूम्रवर्ण श्री गणेश का है जो शिव तत्व का धारक है या शिव तत्त्व स्वरुप है , धूम्रवर्ण श्री गणेश मूषक वाहन पर विराजमान हैं । श्री गणेश का यह अवतार अभिमानासुर का वध करने वाला है|)
कथा:- एक बार श्री ब्रह्मा जी सूर्य देव को कर्म अध्यक्ष का पद दिया । सूर्यदेव पद के प्राप्त होते ही अहम् भाव से ग्रस्त हो गए । अक बार सूर्य देव को छींक आ गई उससे एक विशाल बलशाली दैत्य अहंतासुर प्रकट हुआ । दैत्य होने के कारण वह शुक्राचार्य का शिष्य बना । दैत्यगुरु ने अहंतासुर को श्री गणेश के मंत्र की दीक्षा दी । अहंतासुर ने वन में जाकर श्री गणेश की भक्ति भाव से पूर्ण निष्ठा से कठोर तपस्या करने लगा । हजारो वर्ष व्यतीत होने के पश्चात भगवान श्री गणेश प्रकट हुए और अहंतासुर से वर मांगने को कहा । अहंतासुर ने श्री गणेश के सामने ब्रह्माण्ड के राज्य के साथ साथ अमरता और अजेय होने का वरदान माँगा । श्री गणेश वरदान देकर अंतर्ध्यान हो गये ।
अपने शिष्य अहंतासुर की सफलता का समाचार पाकर शुक्राचार्य प्रसन्न हो गये और अहंतासुर को दैत्योंका राजा घोषित कर दिया । अहंतासुर राज्य करने लगा उसका विवाह भी हो गया और कुछ वर्षोपरांत दो पुत्र प्राप्त हुए ।
अहंतासुर ने एकबार अपने ससुर तथा अपने गुरु के साथ विश्वविजय की योजना बनाई । अपने गुरु और ससुर से आज्ञा प्राप्त करके विश्वविजय का कार्य प्रारम्भ कर दिया । युद्ध प्रारम्भ हो गया चारो तरफ मार काट होने लगी । सर्वत्र हा हा कार मच गया । पृथ्वी अहंतासुर के अधीन हो गई । अहंतासुर ने स्वर्ग पर भी आक्रमण कर दिया दिया देवता भी उसके समक्ष ज्यादा न टिक पाए अति शीघ्र स्वर्ग पर भी अहंतासुर का अधिकार हो गया । धर्म कर्म सब समाप्त होने लगा । पाताल में नागलोक में सर्वत्र अहंतासुर का राज्य हो गया और सर्वत्र मार काट हां हां कार होने लगा । समस्त देवी देवता विस्थापित होकर दर दर भटकने लगे ।
असहाय देवताओं ने श्री शिव जी से सलाह लेकर श्री गणेश की उपासना की सैकड़ो वर्षो तक कठोर तप करने के पश्चात श्री गणेश प्रकट हुए । सभी देवी देवताओं ने श्री गणेश को समस्त व्यथा सुनाइ तब श्री गणेश ने सभी को उनके कष्टों को दूर करने का वचन दिया ।
धूम्रवर्ण श्री गणेश ने देवर्षि नारद के माध्यम से अहंतासुर के पास समाचार भेजा कि वह श्री धूमवर्ण गणेश की शरण में आ जाये और समस्त अत्याचारों को तत्काल बन्द कर दे और शांत जीवन व्यतीत करे । यह सुन कर दैत्यराज क्रोधित हो गया और उसने नारद को भला बुरा कहा और सन्देश का अनुशरण करने से इन्कार कर दिया । नारद निराश लौट गए । नारद से समस्त कहानी सुन कर श्री धूम्रवर्ण गणेश क्रोधित हो गए और अपना पाश असुर सेना पर छोड़ दिया ।
दिव्य पाश धीरे धीरे करके समस्त असुरो को म्रत्यु के छाया में भेजने लगा और चारो तरफ हाहाकार मच गया अहंतासुर शुक्राचार्य के समीप पहुंचा और समाधान पूछने लगा तो दैत्यगुरु ने तत्काल धूम्रवर्ण श्री गणेश की शरण में जाने का आदेश दिया अन्यथा प्राणों का बचना असम्भव है ।
Leave your comment