जाने वर्तमान में सन्यासियों के कितने अखाड़े है ?
कुल मिलाकर आज तेरह (किन्नर अखाड़ा मिलाकर 14 अखाड़े) विभिन्न अखाड़े समाज और धर्म सेवा के क्षेत्र में कार्यरत हैं। आवाहन, अटल, महा निर्वाणी, आनंद और जूना। चारो मठों से सम्बंधित ब्रम्ह्चारियों का अग्नि अखाड़ा भी है। ये सभी शैव( sampradaya ) मत के हैं। और दशनामी संप्रदाय( Dashanami Sampradaya) के अंतर्गत आते है . कुम्भ के अवसर पर ये सभी अखाड़े आपस में मिलते हैं और लोकतांत्रिक पद्धती से अपने पदाधिकारियों का चुनाव करते हैं।
ये अखाड़ा(akhada) शस्त्र और शास्त्र दोनों की पूजा करते हैं। आगे चलकर ये सैनिक शक्ति के रूप में भी सामने आए, जिन्होंने कई क्षेत्रीय शक्तियों के साथ मिलकर युद्ध लड़ा। बहरहाल अखाड़ो के बीच तामाम विवादों को समाप्त करने के लिए 1954 में अखाड़ा परिषद् का गठन हुआ जिसकी व्यव्सथाओं को अब सभी अखाड़े मान्यता देते हैं।
बाद में बने नए अखाड़े :-
वैष्णव मत के 3 दिगंबर, निर्मोही और निर्वाणी, उदासीन के दो, नया पंचायती और बड़ा पंचायती और सिक्खों का निर्मल अखाड़ा अस्तित्व में आया।
वैष्णव अखाड़े :-
बाद में भक्तिकाल में इन शैव दसनामी संन्यासियों की तरह रामभक्त वैष्णव साधुओं के भी संगठन बने, जिन्हें उन्होंने अणी नाम दिया। अणी का अर्थ होता है सेना। यानी शैव साधुओं की ही तरह इन वैष्णव बैरागी साधुओं के भी धर्म रक्षा के लिए अखाड़े बनें।
उदासीन अखाड़े :-
साधुओं की अखाड़ा परंपरा के बाद में गुरु नानकदेव के सुपुत्र श्री श्रीचंद्र द्वारा स्थापित उदासीन संप्रदाय भी चला, जिसके आज दो अखाड़े कार्यरत हैं। एक श्रीपंचायती ती अखाड़ा बड़ा उदासीन और दूसरा श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन। इसी तरह पिछली शताब्दी में सिख साधुओं के एक नए संप्रदाय निर्मल संप्रदाय और उसके अधीन श्री पंचायती निर्मल अखाड़ा का भी उदय हुआ।
इस तरह कुल मिलाकर आज तेरह (किन्नर अखाड़ा मिलाकर 14 अखाड़े) विभिन्न अखाड़े समाज और धर्म सेवा के क्षेत्र में कार्यरत हैं। इन सभी अखाड़ों का संचालन लोकतांत्रिक तरीके से कुंभ महापर्व के अवसरों पर चुनावों के माध्यम से चुने गए पंच और सचिवगण करते हैं। जो इस प्रकार हैं :
अटल अखाड़ा –
यह अखाड़ा 569 ई. में गोडवाना क्षेत्र में स्थापित किया गया। इनके ईष्ट देव भगवान गणेश हैं। इस अखाड़े में केवल ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य दीक्षा ले सकते हैं और कोई अन्य इस अखाड़े में नहीं आ सकता है। यह सबसे प्राचीन अखाड़ों में से एक मानाजाता है। इसका मुख्य पीठ पाटन में है।
अवाहन अखाड़ा :-
यह अखाड़ा 646 ई. में स्थापित हुआ और 1603 में पुर्नसंयोजित किया गया। इनके ईष्ट देव श्री दत्तात्रेय और श्री गजानन हैं। इस अखाड़े का केंद्र स्थान काशी है। इसके स्वामी अनूप गिरी और उमराव गिरी इस अखाड़े के प्रमुख संतों में से हैं।
निरंजनी अखाड़ा :-
यह अखाड़ा 826 ई. में गुजरात के मांडवी में स्थापित किया गया। यह अखाड़ा सबसे ज्यादा शिक्षित अखाड़ा है। इस अखाड़े में करीब 50 महामंडलेश्वर हैं। इनके ईष्ट देव भगवान शंकर के पुत्र कार्तिक हैं।
पंचाग्नि अखाड़ा :-
इस अखाड़े की स्थापना 1136 ई. में हुई थी। इस अखाड़े में केवल ब्रह्मचारी ब्राह्मण ही दीक्षा ले सकते है। इनकी इष्ट देव गायत्री हैं और इनका प्रधान केंद्र काशी है। इनके सदस्यों में चारों पीठ के शंकराचार्य, ब्रह्मचारी साधू व महामंडलेश्वर शामिल हैं।
महानिर्वाण अखाड़ा :-
यह अखाड़ा 681 ई. में स्थापित हुआ था। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा का जिम्मा इसी अखाड़े के पास है। इनके ईष्ट देव कपिल महामुनि हैं।
आनंद अखाड़ा :-
इस अखाड़े की स्थापना 855 ईसवी में मध्य प्रदेश के बेरार में हुई थी। इस अखाड़े के आचार्य का पद ही प्रमुख होता है। इसका केंद्र वाराणसी है।
निमोह अखाड़ा :-
वैष्णव संप्रदाय के तीनों अणि अखाड़ों में से इसी में सबसे ज्यादा अखाड़े शामिल हैं। इस अखाड़े की स्थापना रामानंदाचार्य ने 1720 में की थी। इस अखाड़े के मंदिर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, बिहार, राजस्थान आदि जगहों पर स्थित हैं।
बड़ा उदासीन पंचायती अखाड़ा:-
इस अखाड़े की शुरूआत 1910 में हुई थी। इस अखाड़े के संस्थापक श्रीचंद्रआचार्य उदासीन हैं। इस अखाड़े उद्देश्य सेवा करना है।
नया उदासीन अखाड़ा :-
इस अखाड़े की शुरूआत 1710 में हुई थी। मान्यता है कि इस अखाड़े को बड़ा उदासीन अखाड़े के साधुओं ने बनाया था।
निर्मल अखाड़ा :-
इस अखाड़े की शुरूआत 1784 में हुई थी। इस अखाड़े की स्थापना श्रीदुर्गासिंह महाराज ने की थी। जिनके ईष्टदेव पुस्तक श्री गुरुग्रंथ साहिब है। कहा जाता है कि इस अखाड़े के लोगों को दूसरे अखाड़ों की तरह धूम्रपान करने की इजाजत नहीं है।
वैष्णव अखाड़ा :-
यह बालानंद अखाड़ा ई. 1595 में दारागंज में स्थापित हुआ था। इस अखाड़े की स्थापना मध्यमुरारी द्वारा की गई थी।
नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा :-
इस अखाड़े की स्थापना 866 ईसवी में हुई। जिसके संस्थापक पीर शिवनाथ जी हैं। इनका दैवत गोरखनाथ हैं। इनके 12 पंथ हैंयह संप्रदाय योगिनी कौल नाम से प्रसिद्ध हैं।
जूना अखाड़ा :-
यह अखाड़ा 1145 में उत्तराखण्ड के कर्णप्रयाग में स्थापित हुआ। इसे भैरव अखाड़ा भी कहते हैं। इस अखाड़े के ईष्टदेव रुद्रावतार दत्तात्रेय हैं। इस अखाड़े के पीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी महाराज हैं।
किन्नर अखाड़ा :-
अभी तक कुंभ में 13 अखाड़ों की पेशवाई होती थी, लेकिन इस बार कुंभ में किन्नर अखाड़ा भी शामिल हो चुका है। इस अखाड़े की महामंडलेश्वर लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी हैं।
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