महाशिवरात्रि देवो के देव महादेव( शिव जी ) का विवाह आये जाने अद्भुत विवाह के बारे में
महाशिवरात्रि (शिव और माता पार्वती ) अद्भुत विवाह
फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि का उत्सव मनाया जाता है। इस दिन शिवलिंग के रुद्राभिषेक का महत्व माना जाता है और इस दिन भगवान शिव के पूजन और व्रत से सभी रोग और शारीरिक दोष समाप्त हो जाते हैं। इस वर्ष 4 march 2019 को महाशिवरात्रि का पर्व शिव भक्तों द्वारा उल्लास के साथ मनाया जाएगा। इस दिन के लिए लोगों की मान्यता है कि सृष्टि की रचना इसी दिन हुई थी, वहीं अन्य पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि इस दिन भगवान शिव का विवाह माता पार्वती के साथ हुआ था।भोलापन इनका ऐसा कही देखा नहीं होगा किसी ने ऐसा
एक बेलपत्र पे रीझ जाते है क्या होगा कोई ऐसा।
गिरगिराना छोड़ दो हर इंसान के सामने
आकर एक बेलपत्र चढ़ा दो बस इस भोलेनाथ पे।
जानें क्या है महाशिवरात्रि का इतिहास ?:-
यह कहानी एक जन्म की नहीं है. पार्वती पिछले जन्म में भी शिव की पत्नी थी, तब उनका नाम सती था और वे प्रजापति दक्ष की बेटी थी. परम प्रतापी राजा दक्ष ने जानबूझकर अपने दामाद शिव को अपमानित किया, जिससे आहत को होकर सती हवनकुंड में कूद गईं. सती के वियोग में शिव में विरक्ति का भाव भर दिया और वे तपस्या में लीन हो गए। उधर शिव को फिर से प्राप्त करने के लिए सती जी ने पार्वती बनकर हिमालय के घर जन्म लिया. देवताओं ने शिव उनका ध्यान भंग करने के लिए कामदेव को भेजा तो शिव ने उन्हे भस्म कर दिया. लेकिन पार्वती ने शिव को प्राप्त करने के लिए तप जारी रखा.रिश्ते के लिए स्वयं ब्रह्मा जी ने सप्तऋषि को भेज:-
ब्रह्मा जी ने सप्तऋषि को हिमाचल के घर भेज दिया है। ये पार्वती से मिले और फिर कहने लगे- नारदजी के उपदेश से तुमने उस समय हमारी बात नहीं सुनी। अब तो तुम्हारा प्रण झूठा हो गया, क्योंकि महादेवजी ने काम को ही भस्म कर डाला॥ यह सुनकर पार्वतीजी मुस्कुराकर बोलीं- हे विज्ञानी मुनिवरों! आपने उचित ही कहा। शिवजी को अकाम है। उन्हें कामदेव से क्या लेना देना। हे मुनियों! अग्नि का तो यह सहज स्वभाव ही है कि पाला उसके समीप कभी जा ही नहीं सकता और जाने पर वह अवश्य नष्ट हो जाएगा। महादेवजी और कामदेव के संबंध में भी यही न्याय (बात) समझना चाहिए॥ पार्वती के वचन सुनकर और उनका प्रेम तथा विश्वास देखकर मुनि हृदय में बड़े प्रसन्न हुए। वे भवानी को सिर नवाकर चल दिए और हिमाचल के पास पहुँचे॥ उन्होंने पर्वतराज हिमाचल को सब हाल सुनाया। कामदेव का भस्म होना सुनकर हिमाचल बहुत दुःखी हुए। फिर मुनियों ने रति के वरदान की बात कही, उसे सुनकर हिमवान् ने बहुत सुख माना॥ फिर कहते हैं जल्दी अब विवाह की तैयारी करो। हिमालयराज बोले इतनी जल्दी भी क्या है?मुनि बोले- बड़ी मुश्किल से समाधि से जागे है भोले नाथ। फिर समाधी लग गई तो न जाने कब खुलेगी। हिमाचल ने श्रेष्ठ मुनियों को आदरपूर्वक बुला लिया और उनसे शुभ दिन, शुभ नक्षत्र और शुभ घड़ी शोधवाकर वेद की विधि के अनुसार शीघ्र ही लग्न निश्चय कराकर लिखवा लिया॥ फिर हिमाचल ने वह लग्नपत्रिका सप्तर्षियों को दे दी। उन्होंने जाकर वह लग्न पत्रिका ब्रह्माजी को दी। ब्रह्माजी ने लग्न पढ़कर सबको सुनाया, उसे सुनकर सब मुनि और देवताओं का सारा समाज हर्षित हो गया।भगवान शिव की शादी में आए हर तरह के प्राणी:-
आम तौर पर जहां देवता जाते थे, वहां असुर जाने से मना कर देते थे और जहां असुर जाते थे, वहां देवता नहीं जाते थे।शिव पशुपति हैं, मतलब सभी जीवों के देवता भी हैं, तो सारे जानवर, कीड़े-मकोड़े और सारे जीव उनकी शादी में उपस्थित हुए। यहां तक कि भूत-पिशाच और विक्षिप्त लोग भी उनके विवाह में मेहमान बन कर पहुंचे।उनकी आपस में बिल्कुल नहीं बनती थी। मगर यह तो शिव का विवाह था, इसलिए उन्होंने अपने सारे झगड़े भुलाकर एक बार एक साथ आने का मन बनाया।शिव पशुपति हैं, मतलब सभी जीवों के देवता भी हैं, तो सारे जानवर, कीड़े-मकोड़े और सारे जीव उनकी शादी में उपस्थित हुए। यहां तक कि भूत-पिशाच
और विक्षिप्त लोग भी उनके विवाह में मेहमान बन कर पहुंचे।
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