अयोध्या की परिक्रमा के बारे में जानने से पहले एक बात हम सभी को जान लेनी चाहिए कि भारतीय संस्कृति समय-समय पर हमें अध्यात्म से जोड़ने की बात करती है। अध्यात्म हमारे मन को पवित्र बनाता है और हमें एक शक्ति देता है जिससे हम जीवन की हर कठिनाई से लड़ सके और प्रेम के साथ जीवन का निर्वाह कर सकें। अयोध्या की परिक्रमा( vrindavan parikrama) श्री राम के जीवन से जुड़ी परिक्रमा है भक्त और भगवान से जुड़ी हुई परिक्रमा है। आज हम अयोध्या की परिक्रमा के बारे में जानेंगे क्यों यह अपनी जगह पर महत्वपूर्ण रखता है क्यों इस पीढ़ी को और आने वाली पीढ़ी को इसके महत्व की गहराई को समझना चाहिए।
“जानकारी अच्छी लगे तो सभी से शेयर जरूर करे क्युकी आज हमारी खोती हुई भारतीय संस्कृति जो विरासत में मिलीउसकोको प्रसार की जरुरत है जिससे आने वाली पीढ़ियों तक इसकी चमक पहुंच सके। और अपनी मातृभाषा हिंदी पे हमेशा गर्व कीजिये और इसका सम्मान-प्रसार जरूर कीजिये। “
अयोध्या परिक्रमा क्या है?:-
सरयू तट के किनारे बसा अयोध्या धाम है जो कि श्री राम चंद्र की जन्मभूमि है. सभी श्रद्धालु श्री राम जी के उन सभी दिव्य स्थानों की परिक्रमा लगाते जहाँ पर श्री राम ने बचपन में बाल लीलाये की और जहाँ के पग पग पे उनकी अनेक जीवन की झलकियां है। उनके उदार , श्रद्धा , कर्तव्य पराकाष्टा का साक्षात् प्रमाण है। और श्री राम जी का अखंड वास् है। इन सभी स्थानों के चारो तरफ चल कर भक्तगण परिक्रमा करते है इसे अयोध्या परिक्रमा कहते है।
परिक्रमा का मुख्य उद्देश्य ये है कि हिन्दू धर्म के मुताबिक जीवात्मा 84 लाख योनियों में भ्रमण करती है। ऐसे में जन्म जन्मांतर में अनेकों पाप भी किए होते हैं। इन पापों को नष्ट करने के लिए परिक्रमा की जाती है। कहा जाता है कि परिक्रमा में पग-पग पर पाप नष्ट होते हैं।
अयोध्या में मुख्य तौर से 3 प्रकार की परिक्रमा होती हैं।:-
पहली 84 कोसी, दूसरी 14 कोसी और तीसरा 5 कोसी। आपको बता दें कि 1 कोस में तीन किलो मीटर होते हैं। अयोध्या की सीमा तीन भागों में बंटी है। इसमें 84 कोस में अवध क्षेत्र, 14 कोस में अयोध्या नगर और 5 कोस में अयोध्या का क्षेत्र आता है। इस लिए तीन परिक्रमा की जाती है। इनमें से 84 कोसी परिक्रमा में साधू-संत हिस्सा लेते हैं, तो 14 कोसी और 5 कोसी परिक्रमा में आम लोग शामिल होते हैं।
84 कोसी परिक्रमा का महत्व:-
84 कोसी परिक्रमा पूरे अवध क्षेत्र में होती है। इतनी बड़ी परिक्रमा की वजह से इसमें आम लोग शामिल नहीं होते। ये परिक्रमा खास तौर से साधु-संतों की ओर से की जाती है। इसका महत्व ये है कि इसमें साधु-संत समाज के कल्याण के लिए ये परिक्रमा करते हैं।
यात्रा के मार्ग में उत्तर प्रदेश के छह जिले आते हैं- बाराबंकी, फैजाबाद, गोंडा, बहराइच, अंबेडकरनगर और बस्ती जिला। उक्त जिलों में यात्रा के महत्वपूर्ण पड़ाव होते हैं जहां रुककर यात्री आराम करते हैं।
14 कोसी परिक्रमा का महत्व:-
कार्तिक परिक्रमा को 14 कोसी परिक्रमा के तौर पर जाना जाता है। ये साल में एक बार होती है। ऐसा कहा जाता है कि कार्तिक परिक्रमा के दौरान भगवान विष्णु का देवोथान (जागना) होता है। इस वजह से इस दौरान किए गए काम को क्षरण नहीं होता। आप अगर मन से परिक्रमा में हिस्सा लें तो उसका फल आपको जरूर मिलता है।
5 कोसी परिक्रमा का महत्व:-
5 कोसी परिक्रमा अयोध्या क्षेत्र में हर एकादशी को होती है। इस तरह से हर महीने मे दो बार ये परिक्रमा होती है। इस परिक्रमा का भी उद्देशय पापों को नष्ट करना होता है।
14 काेसी परिक्रमा में भक्त अयोध्या शहर की परिक्रमा करते हैं। जबकि 5 कोसी में अयोध्या क्षेत्र की और 84 कोसी में पूरे अवध क्षेत्र की परिक्रमा की जाती है। मान्यतानुसार, 14 और 5 कोसी परिक्रमाओं के साथ कार्तिक मास में कार्तिक स्नान का भी बड़ा महत्व है। जो चौदह कोसी परिक्रमा नहीं कर पाते वह देवोत्थानी प्रबोधनी एकादशी के दिन अवश्य पंचकोसी परिक्रमा करते हैं, इस दिन परिक्रमा करने का विशेष धार्मिक महत्व है। 5 कोसी परिक्रमा रामजन्म भूमि के चारों तरफ 5 कोस की परिधि में होती है। कार्तिक नवमी के दिन लाखों श्रद्धालु भगवान राम की जन्मभूमि के चारों ओर 14 कोसी परिक्रमा पूरी करते हैं। यह परिक्रमा वैसे तो कठिन होती हैं लेकिन लोगों की आस्था है कि श्रीराम उन्हें इन परिक्रमाओं को पूरा करने के लिए विशेष ऊर्जा प्रदान करते हैं, इसलिए वे हंसते-हंसते इन्हें पूरी आस्था के साथ पूरा करते हैं।
14 और 5 कोसी परिक्रमा से लाभ :-
कहते है कार्तिक मास में होने वाली 14 कोसी परिक्रमा को कार्तिक परिक्रमा के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि कार्तिक मास में होने वाली इन परिक्रमाओं के दौरान ही भगवान विष्णु का देवोत्थान होता है।
14 कोसी परिक्रमा को जो भी श्रद्धालुजन पूरी श्रद्धा और विश्वास से भाग लेते हैं तो उन्हें शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
ऐसी भी मान्यता है कि 14 कोसी परिक्रमा से आत्मिक शुद्धि और पाप से मुक्ति मिलती है।
इसी तरह पांच कोसी परिक्रमा करके भी श्रद्धालुओं को शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
परिक्रमा का आध्यात्मिक वैज्ञानिक दोनों तरह का महत्व बताया जाता है,
एकतरफ जहां -जहां लोग आस्था में सराबोर होकर अपने आराध्य के लिए इतनी लंबी दूरी मुस्कुराते हुए पूरी करते हैं तो वहीं चलने से शरीर को भी नई ऊर्जा की भी प्राप्ति होती है।
परिक्रमा की परंपरा:-
परिक्रमा की परंपरा आज की नहीं बल्कि कई सदियों से चली आ रही है। ऐसा माना जाता है इस परिक्रमा को करने के साथ ना सिर्फ इस जन्म के बल्कि कई जन्मों के पाप भी नष्ट हो जाते हैं। इसी मान्यता के चलते देश के कोने-कोने से लाखों की संख्या में बच्चे, बूढ़े और युवा सभी भक्तिभाव के साथ परिक्रमा करते हैं। पवित्र नदी सरयू में स्नान करने के बाद श्रीराम का जयघोष करते हुए प्रमुख मंदिरों में दर्शन पूजन करते हैं।
ग्रंथ में अयोध्या परिक्रमा का वर्णन :-
स्कन्द पुराण में अयोध्या के 53 तीर्थस्थानों का अति सुंदर और यथावत वर्णन है। स्कन्द पुराण में अयोध्या की 2 दिन की परिक्रमा दी है जो इस प्रकार है:- विष्णुहरी, स्वर्गद्वार, पापमोचनक, ऋणमोचनक, सहस्रधारा, चन्द्रहरी, धर्महरी, चक्रहरी, ब्रह्मकुण्ड, महाविद्या, स्वर्गद्वार, रुक्मिणी तीर्थ। युगों से अयोध्या की वृहद् परिक्रमा है- स्वर्गद्वार, सूर्यकुण्ड, जनौरा, निर्मल कुण्ड, गोप्रतार घाट, स्वर्गद्वार और लघु (अन्तर्वेदी) परिक्रमा है:- रामघाट, सीताकुण्ड, अग्निकुण्ड, विद्या कुण्ड, लक्ष्मण घाट, स्वर्गद्वार, राम घाट।
स्कन्द पुराण और गरुड़ पुराण में अयोध्या नगरी का उल्लेख ‘सिद्ध क्षेत्र’ ‘वल्लभ बैठक’ ऐसा आता है। ब्रह्म पुराण में कहा गया है :-
अयोध्या मथुरा माया, काशी कांची ह्यवंतिका।
एता: पुण्यतमा: प्रोक्ता: पुरीणामुतामोत्तमा:॥
कोशल देश की राजधानी ऐसा अयोध्या का महत्व वाल्मीकि रामायण में है। अयोध्या याने ‘अयुध्य याने ‘अजेय’- जिसे कोई पराजित नहीं कर सकता।
अयोध्या परिक्रमा में अनेक पवित्र स्थान हैं-
कनक भवन,
राम जन्मस्थान,
चीरोदक (चीर सागर) जहां राजा दशरथ ने पुत्र कामेष्टि हवन किया,
सीता रसोई,
24 अवतार,
कोप भवन,
रतन सिंहासन,
आनंद भवन,
रंग महल,
साक्षी गोपाल,
रतन मण्डप, जहां भगवान् राम का दरबार भरता था।
स्वर्गद्वार ।
गो प्रतार तीर्थ (गुप्तार घाट) जो अयोध्या का हिस्सा है
और 9 मील पर है। सरयू नदी पर लक्ष्मण कुण्ड, राम राजवाड़ा जो हनुमान गढ़ी में है,
सुग्रीव टीला,
अंगद टीला,
मत गजेन्द्र,
तुलसी चौरा- जहाँ तुलसी रामायण का रचना स्थान है, जो कनक भवन के सामने आता है।
घोषार्क कुण्ड जो राम घाट से 5 मील है, जिसका उल्लेख स्कन्द पुराण में आता है जो आधुनिक सूर्य कुण्ड है।
सुवर्णखनी तीर्थ – जहां राजा रघु ने कौत्स ऋषि को सुवर्ण दान किया,
जहां कुबेर ने सुवर्णवर्षा की।
जनकौरा- जो जनक राजा का घर था, जो आज फैजाबाद-सुल्तानपुर रास्ते पर आता है
दशरथ तीर्थ है जहां राजा दशरथ के दाह संस्कार हुए
अब तो बहुत ही हर्ष की बात की इतने विरोधो के बाद अब श्री राम जी का भव्य मंदिर का निर्माण हो रहा है। जो की बहुत जल्द भक्तो के लिए खुलेगा जहा वो प्रभु का दर्शन कर सकेंगे।
अयोध्या में प्रथम बार :-
अगर आप अयोध्या में प्रथम बार आए हैं पहली बार आए हैं तो आपको अयोध्या की महिमा के बारे में जरूर जाना चाहिए अयोध्या के प्रसिद्ध मंदिर के बारे में जरूर जाना चाहिए। यहां पर जितने भी मंदिर है उनका श्री राम जी से नाता है वह उनकी लीला को सुमिरन करते हुए बनाया गया है। जिस जगह श्री राम जी ने जो लीला की थी उस लीला को ध्यान में रखकर कई युगों पहले इन मंदिरों की नींव रखी गई जिससे कि आने वाली पीढ़ी इसके महत्व को समझ सके श्री राम के जीवन के अनमोल ज्ञान भक्ति को फिर से जी सकें और उससे प्रेम भक्ति को प्राप्त कर अपने जीवन को निर्मल बना सकें। सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए यहाँ क्लिक करे अयोध्या
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अयोध्या परिक्रमा क्या है?
सरयू तट के किनारे बसा अयोध्या धाम है जो कि श्री राम चंद्र की जन्मभूमि है। उसकी परिक्रमा
अयोध्या परिक्रमा कब की जाती है?
कार्तिक नवमी के दिन लाखों श्रद्धालु भगवान राम की जन्मभूमि के चारों ओर 14 कोसी परिक्रमा पूरी करते हैं।
अयोध्या में मुख्य तौर से कितने प्रकार की परिक्रमा होती है ?
3 प्रकार की परिक्रमा होती हैं। पहली 84 कोसी, दूसरी 14 कोसी और तीसरा 5 कोसी।