गोवर्धन परिक्रमा(Goverdhan Parikarma) साक्षात् श्री कृष्ण भगवान की परिक्रमा है। इस कलयुग में जो श्रद्धा से भरकर परिक्रमा करेगा वो गोवेर्धन नाथ की अनूठी पात्र जरूर बनेगा। गोवर्धन पर्वत आज भी और आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक भक्त और भगवान के भरोसे की दृढ़ता को दर्शाता है और दर्शायेगा। जब हम पूर्ण समर्पण भगवान के चरणों में करते हैं सिर्फ उनका आसरा ही जब हमें नजर आता है तब किस प्रकार भगवान अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और उनके विश्वास को भरोसे को टूटने नहीं देते हैं। उसका साक्षात् प्रमाण गोवेर्धन पर्वत है जो की श्री कृष्ण का ही एक रूप है।
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परिचय:-
गोवर्धन पर्वत, जिसे गिरिराज भी कहा जाता है, का अर्थ है कि पहाड़ों का राजा भौतिक दृष्टि से कम पर्वत से अधिक कुछ नहीं है। लेकिन जो श्री कृष्णा के जीवन की सत्य कथाओ को जानते है उनके ये पता है की आध्यात्मिक महत्व क्या है इस दिव्य पर्वत गोवर्धन परिक्रमा की। यह भगवान श्री कृष्ण की लीलास्थली है। यहीं पर भगवान श्री कृष्ण ने द्वापर युग में ब्रजवासियों को इन्द्र के प्रकोप से बचाने के लिये गोवर्धन पर्वत अपनी तर्जनी अंगुली पर उठाया था। गोवर्धन पर्वत को भक्क्तजन गिरिराज जी भी कहते हैं।
गोवर्धन परिक्रमा मुख्यतः गोवर्धन पूजा, पूर्णिमा, एकादशी इस प्रसिद्द दिन को भारी मात्रा में की जाती है। लेकिन गोवर्धन परिक्रमा आप कभी भी कर सकते हैं उजाले पक्ष में ज्यादातर गोवर्धन परिक्रमा की जाती है और पूर्णिमा आते-आते यहां पर भीड़ काफी बढ़ जाती है। गोवर्धन परिक्रमा को काफी लोग जानते हैं और काफी दूर से लोग आते हैं इस परिक्रमा को लगाने के लिए कहते हैं गोवर्धन भगवान हमारे कष्टों का पहाड़ उठा लेते हैं और हमें सही मार्गदर्शन करते हैं।
गोवर्धन परिक्रमा का महत्व:-
गोवर्धन परिक्रमा श्री कृष्ण के लिए भक्तों के प्रेम को दर्शाता है। इस कलियुग में गोवर्धन गिरिराज जी महाराज की परिक्रमा बहुत ही महत्वपूर्ण मानी गई है। गिरिराज गोवर्धन की परिक्रमा श्रद्धालुओं के सभी मनोरथों को पूर्ण करने वाली होती है। गोवर्धन पर्वत को योगेश्वर भगवान कृष्ण का साक्षात स्वरूप माना गया है।
श्रीमद् भागवत में स्वयं गोपियों ने भी कहा है :- हंतारमद्रिरबलाहरिदास वर्यो यानी श्री गोवर्धन गिरिराज जी के जैसा भक्त आज तक कोई नहीं हुआ यही सर्वश्रेष्ठ एकमात्र भक्त हैं।
तभी भगवान श्री कृष्ण ने गिरिराज गोवर्धन को प्रत्यक्ष देव की मान्यता प्रदान की। इन्हीं गोवर्धन पर्वत को द्वापर युग में भगवान कृष्ण द्वारा इन्द्र का मद चूर करने के लिए एवं ब्रजवासियों को इन्द्र के कोप से बचाने के लिए 7 दिन 7 रात तक अपने वाम हाथ की कनिष्ठा अंगुली के नख पर धारण किया था।
कलियुग में गिरिराज गोवर्धन को भगवान कृष्ण का ही साक्षात स्वरूप मानकर उनकी परिक्रमा की जाती है।
गिरिराज गोवर्धन की यह परिक्रमा अनंत फलदायी व पुण्यप्रद होती है।
गिरिराज गोवर्धन उत्तरप्रदेश के मथुरा जिले से लगभग 21 किमी की दूरी पर स्थित है।
गिरिराज गोवर्धन पर्वत 21 किमी के परिक्षेत्र में फैला हुआ है। गिरिराज पर्वत की परिक्रमा 7 कोस, 14 मील अर्थात 21 किमी० की होती है।
गोवर्धन की परिक्रमा कैसे शुरू होती है:-
गोवर्धन गिरिराज जी की परिक्रमा वैसे तो कहीं से भी प्रारंभ की जा सकती है किंतु कुछ लोगों की मान्यता अनुसार गिरिराज गोवर्धन की परिक्रमा प्रारंभ करने हेतु 2 मुखारविंद हैं। ये 2 मुखारविंद हैं-
मानसी गंगा मुखारविंद मंदिर
जतीपुरा मुखारविंद मंदिर
इन 2 मुखारविंदों में से किसी एक मुखारविंद से परिक्रमा प्रारंभ कर परिक्रमा पूर्ण करने पर वापस उसी मुखारविंद पर पहुंचना होता है। किंतु सभी वैष्णव भक्तजन ‘मानसी गंगा मुखारविंद से ही अपनी परिक्रमा का प्रारंभ करते हैं, शेष सभी भक्त ‘जतीपुरा’ मुखारविंद से अपनी परिक्रमा प्रारंभ करते हैं। ‘जतीपुरा-मुखारविंद’ को श्रीनाथजी के विग्रह ( बल्लभ कुल संप्रदाय ) की मान्यता प्राप्त है।
वैसे परिक्रमा का सही मायने में नियम यह कहता है कि आप जिस स्थान से भी प्रारंभ करते हैं उसी स्थान तक आपको पूरा करना होता है चाहे वह स्थान कोई भी हो, चाहे वो राधा कुंड हो, चाहे वो मानसी गंगा मुखारविंद हो, चाहे वह दानघाटी मंदिर हो, चाहे वह आन्यौर गांव हो, चाहे वो जतीपुरा मुखारविंद हो, चाहे वह गोवर्धन गांव हो कोई भी स्थान हो।
गोवर्धन परिक्रमा के नियम:-
गोवर्धन परिक्रमा के नियमगोवर्धन परिक्रमा एक दिन में पूरी की जाती है यदि आप बिमार हैं तो आप धीरे- धीरे यह परिक्रमा पूरी कर सकते हैं।
गोवर्धन परिक्रमा में यदि कोई व्यक्ति परेशानी में है तो उसकी समस्या का समाधान करने का प्रयास करना चाहिए। ऐसा करने से आपको पुण्य फलों की प्राप्ति होगी।
परिक्रमा में दंडवत प्रणाम या साष्टांग प्रणाम करते समय शरीर के आठ अंग दोनों भुजाएं,दोनों पैर, दोनों घूटने, सीना, मस्तक और नेत्र जमींन के संपर्क में होने चाहिए।
गोवर्धन परिक्रमा करते समय प्रारंभ में कम से कम पांच और अंत में कम से कम एक दंडवत या साष्टांग प्रणाम अवश्य करें।
गिरिराज जी के कुंडो में स्नान करते समय साबून, तेल व शैम्पू आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
गिरिराज जी के कुंडो में स्नान करते समय विशेष सावधानी बरतनी चाहिए।
गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा प्रारंभ करने तथा पूरी करने का कोई निश्चित समय नही है। परिक्रमा दिन या रात में कभी भी प्रारंभ की जा सकती है। लेकिन आप जहां से परिक्रमा प्रारंभ करें आपको वहीं से परिक्रमा समाप्त करनी होगी।
गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते समय लगातार भगवान के नाम का जाप करते रहना चाहिए।
शिव पुराण के अनुसार मनुष्य को तीर्थ स्थानों में सदा स्नान ,दान व जप आदि करना चाहिए। क्योंकि स्नान न करने पर रोग, दान न करने पर दरिद्रता और जप न करने पर मूकता का भागी बनना पड़ता है।
गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा नंगे पैर की जाती है। परिक्रमा करते समय जूते , चप्पल न पहनें। अगर कोई व्यक्ति कमजोर हो या फिर कोई छोटा बच्चा साथ में हो तो रबड़ की चप्पल या फिर कपड़े के जूते प्रयोग किए जा सकते हैं।
गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते समय किसी पर भी क्रोध नहीं करना चाहिए और न हीं किसी को अपशब्द या कटू वचन बोलने चाहिए।
गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते समय अहिंसा धर्म का पालन करें। किसी भी जंतु को कोई नुकसान न हो इस प्रकार से परिक्रमा करें।
शास्त्रों के अनुसार तीर्थ स्थानों पर किए गए पुण्य कार्यों का फल हमें कई गुना बढ़कर प्राप्त होता है। इसलिए तीर्थ स्थान पर हमेशा पाप कर्म से बचना चाहिए।
श्री गोवर्धन महाराज की भव्यता:-
गोवर्धन पर्वत की वंदना करते हुए इसे वृन्दावन में विराजमान और वृन्दावन की गोद में निवास करने वाला गोलोक का मुकुटमणि कहा गया है।
पौराणिक मान्यता अनुसार श्री गिरिराजजी को पुलस्त्य ऋषि द्रौणाचल पर्वत से ब्रज में लाए थे।
दूसरी मान्यता यह भी है कि जब राम सेतुबंध का कार्य चल रहा था तो हनुमान जी इस पर्वत को उत्तराखंड से ला रहे थे लेकिन तभी देव वाणी हुई की सेतु बंध का कार्य पूर्ण हो गया है तो यह सुनकर हनुमानजी इस पर्वत को ब्रज में स्थापित कर दक्षिण की ओर पुन: लौट गए।
पौराणिक उल्लेखों के अनुसार भगवान कृष्ण के काल में यह अत्यन्त हरा-भरा रमणीक पर्वत था। इसमें अनेक गुफ़ा अथवा कंदराएँ थी और उनसे शीतल जल के अनेक झरने झरा करते थे। उस काल के ब्रज-वासी उसके निकट अपनी गायें चराया करते थे, अतः वे उक्त पर्वत को बड़ी श्रद्धा की द्रष्टि से देखते थे। भगवान श्री कृष्ण ने इन्द्र की परम्परागत पूजा बन्द कर गोवर्धन की पूजा ब्रज में प्रचलित की थी, जो उसकी उपयोगिता के लिये उनकी श्रद्धांजलि थी।
श्री गोवर्धन महाराज सत्य घटना:-
भगवान श्री कृष्ण(shri krishna) की लीलाओं में विशेष लीला वृंदावन(vrindavan) में हुई वह अद्भुत लीला थी जिस लीला के कारण श्री कृष्ण का वह चमत्कार(miracle) देख आज हजारों लाखों लोगों आकर्षित होते हैं भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत(Govardhan Hill )उठा लिया था यह लीला कुछ इस प्रकार घटित हुई कृष्ण बलराम रोज की तरह गायों को चराने गए जब गाय चढ़ाकर भगवान वापस आए तो उन्होंने देखा पूरा का पूरा वृंदावन सभी कुछ विशेष सामग्री पूजा की थाली लेकर नंद बाबा के कहने पर बड़े पूजा की तैयारी कर रहे थे .
श्री कृष्ण छोटे थे वो पूछने अलगे यज्ञ तैयारी और किस लिए वह सवाल करने लगे नंदबाबा से। श्री कृष्ण(Shri krishna) जानते तो सब कुछ थे फिर भी नंद जी से पूछते हैं बाबा यह हम सब किनकी पूजा की तैयारी कर रहे हैं फिर क्या था नंद बाबा ने बालक समझकर कृष्ण को कहा यह तो हम लोग हर साल करते हैं उसी पूजा की तैयारी है। नहीं बाबा मुझे बताइए यह किस भगवान के लिए पूजा(puja) की जा रही है पहले नंद बाबा ने टालने की कोशिश की लेकिन फिर नंद बाबा ने कहा हम लोग इंद्र की पूजा कर रहे हैं क्योंकि इंद्र हमें वर्षा प्रदान करते हैं वर्षा के कारण हमारा खेत अच्छे से फलता-फूलता है कृष्ण जी ने कहा वर्षा तो हर जगह होती है वर्षा होती है तो खेतों पर भी होती है खेतों पर होती है समुद्र में भी होती हर जगह होती है लेकिन सभी लोग तो इंद्र जी की पूजा नहीं करते बारिश तो हर जगह होती है इस प्रकार से तर्क दिया तो नंद बाबा कुछ बोल नहीं पाए उन्होंने कहा कि यह पूजा कई पीढ़ियों से चली आ रही है तो इसीलिए हम भी कर रहे हैं क्या इसका शास्त्रों में वर्णन है यह हम लोग कई पीढ़ियों से करते आ रहे हैं। हम बरसों से बस करते चले आ रहे हैं।
हमें विशाल गोवर्धन की पूजा करनी चाहिए :-
श्री कृष्णा जी ने कहा हमें विशाल गोवर्धन की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हम गोवर्धन की पूजा करेंगे तो गोवर्धन ही तो हमारी गायों को भोजन देती है जिससे कि गायों की भरपूर दूध से हम सबकी सेवा होती है। हमें चाहिए कि हम गोवर्धन की पूजा करें। तर्क देने के बाद वास्तव में भगवान श्री कृष्ण लीला के द्वारा यह समझाना चाह रहे हैं देवता तो बहुत सारे हैं मुख्य देवता 33 है लेकिन संख्या में 33 करोड़ देवता हैं सारे पृथ्वी से ऊपर के लोग में रहते हैं एक ब्रह्मांड की 14 लोक है पृथ्वी के नीचे सात लोक हैं भगवान कृष्ण अर्जुन को भगवत गीता में बोलते हैं हे अर्जुन यह जो ब्राह्मण है इसमें जितने लोग हैं चाहे ऊपर जाएं या मृत्यु के पश्चात नीचे जाए इन सब लोगों में दुख है और मृत्यु है और फिर से जन्म होता है यहां तो कई बार हम यह सोचते कि दुखों के कारण अपना घर बदलते बदलते हैं देश बदलते और यह सोचते हैं कि हमारे दुख कम हो जाएगा लेकिन दुख खत्म नहीं होता मानसिक चिंताएं खत्म नहीं होती
श्री कृष्णा ने कहा :-
श्री कृष्णा ने कहा हमें देवताओं की पूजा नहीं करनी चाहिए हमें कर्म की पूजा करनी चाहिए हमें भगवान की पूजा करनी चाहिए और गोवर्धन पर्वत साक्षात भगवान का स्वरुप है क्योंकि वह हम सभी को छाया प्रदान करते हैं हम सभी के गायो को अन धन प्रदान करते हैं इसीलिए हम सभी को गोवर्धन महाराज के शरण में जाना चाहिए वह हम सब की पूजा जरूर स्वीकार करेंगे बस इतना ही सुनना था
नंद बाबा ने कन्हैया की बात मान ली और सभी ग्वाल-बाल गैया मैया सभी को साथ लेकर सब बड़ी ही मस्त से होकर गोवर्धन महाराज की पूजा करने गए
उन्होंने छप्पन भोग गोवर्धन महाराज को लगाया और खूब खूब अच्छे से उनकी पूजा सेवा की बस इतना देखते ही इंद्र देवता क्रोधित हो गए और उन्होंने बहुत ही मूसलाधार बारिश कि जिससे कि पूरा ब्रज गांव में जल ही जल हो गया था पूरा ब्रज गांव डूबने लगा था
तब सभी कहने लगे कन्हैया अब हम क्या करें हमें कौन बचाएगा तुमने ही कहा था इंद्र की पूजा मत करो अब इंद्र जी हम लोगो से क्रोधित हो गए हम कैसे उन्हें शांत करें।
तो श्री कृष्ण जी ने कहा नंद बाबा हमें डरने की जरूरत नहीं हमने गोवर्धन भगवान की पूजा की है तो हमें सिर्फ अब उनकी शरण में जाना चाहिए तो सभी गोवर्धन पर्वत के अंदर प्रवेश करने लगे।
गुफा में जगह कम होने के कारण सभी अंदर न जा सके ग्वाल बाल गाय सब बाहर खड़े थे तो देखते ही देखते श्री कृष्ण भगवान ने अपने कनिष्ठ उंगली पर श्री गोवर्धन महाराज को उठा लिया
और सभी को कहा इस के अंदर आ जाओ पूरा ब्रज लोक पूरे बृजवासी सभी गोवर्धन के नीचे आ गए और जिससे उनकी रक्षा हो गई
सब देख कर इंद्र देवता को लगा कि उन्होंने कुछ गलत किया है तो वह कृष्ण भगवान से क्षमा मांगने लगे ऐसा नहीं करना चाहिए तभी उनका नाम गोविंद नाम पड़ा गोवर्धनधारी नाम पड़ा। श्री. कृष्ण कहते हैं जब हमें अपने दुखों के पहाड ना उठे तो एक बार सच्चे मन से जो उनकी शरण में जाए तो वो सभी के दुखों का पहाड़ जरूर उठाएंगे पर विश्वास और श्रद्धा होना चाहिए। जैसे ब्रजवासी सीधा गोवर्धन भगवान की शरण में ही गए। श्री कृष्ण जी के ऊपर अपनी श्रद्धा भाव दिखाया आंख बंद करके उनके शरण में चले गए इस प्रकार आज भी गोवर्धन पर्वत हम सभी की इच्छाओं को पूरा करते हैं श्रद्धा और भक्ति भावना चाहिए। आज बहुत से लोगों की श्रद्धा गोवर्धन महाराज से जुड़ी हुई है हर महीने लोग यहां पर परिक्रमा (Goverdhan Parikarma ) के लिए आते हैं और अपने दुखों को बांटते हैं और उनको दुख कम करने का वर मांगते है और उनकी इच्छाएं पूरी होती है कलयुग में साक्षात प्रकट है श्री कृष्ण जी का स्वरुप। श्री. गोवर्धन महाराज की जय हो जय हो श्री गोवर्धन महाराज महाराज नित्य आया करो।
श्री. गोवर्धन महाराज की जय हो
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गोवर्धन परिक्रमा कब लगाई जाती है ?
गोवर्धन परिक्रमा आप कभी भी कर सकते हैं उजाले पक्ष में ज्यादातर गोवर्धन परिक्रमा की जाती है गोवर्धन पूजा, पूर्णिमा, एकादशी
श्री गोवर्धन महाराज सत्य घटना क्या है ?
ये श्री कृष्ण के जीवन से जुड़ी हुई है
गोवर्धन की परिक्रमा कैसे शुरू होती है?
मानसी गंगा मुखारविंद मंदिर जतीपुरा मुखारविंद मंदिर