मैहर वाली माता माँ शारदा मंदिर-(Maa Sharda Temple Maihar)
स्थान-(Location):– साहिलारा, मैहर, मध्य प्रदेश क्यों प्रसिद्ध है:- माँ के शक्ति पीठों में से एक है यहाँ माँ सती का हार गिरा था। मैहर का मतलब है, मां का हार ज्ञान की देवी शारदा (सरस्वती माता) का अद्भुत मंदिर जो की त्रिकुटा पहाड़ी पर स्थित है। जिसके लिए 1000 सीढ़ियों को चढ़ कर भक्तो को जाना पड़ता है। ये शारदा माँ मैहर वाली माता के नाम से भी प्रसिद्द है। दिल को छू जाना वाला दृश्य और हर कदम पे माँ की अनुभूति आपको एक अलग ही दुनिया में ले जाती है। जहाँ-जहाँ माँ सती के शव के विभिन्न अंग और आभूषण गिरे थे। यह ऐतिहासिक मंदिर 108 शक्ति पीठों में से एक है। वहां-वहां शक्ति पीठों का निर्माण हुआ। उन्हीं में से एक शक्ति पीठ है जिसका नाम मैहर देवी का मंदिर, जहां मां सती का हार गिरा था। मैहर का मतलब है, मां का हार, इसीलिये इस स्थान का नाम मैहर पड़ा।
मैहर वाली माता मंदिर का इतिहास ( History of Maihar wali mata Temple):-
मैहर वाली माता मंदिर के इतिहास में जाये तो जहाँ मां शारदा की मूर्ति(विग्रह) स्थापित है वही माँ के चरणों के नीचे अत्ति प्राचीन एक लेख लिखा है। एक प्राचीन शिलालेख से मूर्ति की प्राचीन प्रमाण की पहचान होती है। श्री मैहर नगर के पश्चिम दिशा की ओर चित्रकूट पर्वत में श्रद्धेय शारदा देवी तथा उनके बाईं ओर प्रतिष्ठापित श्री नरसिंह भगवान की पाषाण मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा आज से लगभग 1994 वर्ष पूर्व विक्रमी संवत् 559 शक 424 चैत्र कृष्ण पक्ष चतुर्दशी, मंगलवार के दिन, ईसवी सन् 502 में तोर मान हूण के शासन काल में श्री नुपुल देव द्वारा कराई गई थी। यहाँ हर रोज़ हजारों दर्शनार्थी आते हैं किंतु वर्ष में दोनों नवरात्रों में यहां मेला लगता है जिसमें लाखों यात्री मैहर आते हैं।
मैहर वाली शारदा माता के चमत्कार ( Miracle of Maihar wali sharda mata )
पौराणिक कथा के अनुसार 200 साल पहले मैहर में महाराज दुर्जन सिंह जुदेव नाम के राजा शासन करते थे। उन्हीं कें राज्य का एक चरवाहा गाय चराने के लिए जंगल में आया करता था। एक दिन उसने देखा कि उन्हीं गायों के साथ एक और सुनहरी गाय कहीं से आ गई और शाम होते ही वह गाय अपने आप अचानक कहीं चली गई । फिर जब दूसरे दिन वह चरवाहा इस पहाड़ी पर गायें लेकर आया, तो देखा कि फिर वही गाय इन गायों के साथ मिलकर चर रही है । तब उसने निर्णय किया कि शाम को जब यह गाय वापस जाएगी तब उसके पीछे-पीछे वह भी जाएगा गाय का पीछा करते हुए उसने देखा कि वह पहाड़ी की चोटी में स्थित गुफा में चली गई और उसके अंदर जाते ही गुफा का द्वार बंद हो गया। वह चरवाह वहीं द्वार पर बैठ गया, उसे वहां एक बूढ़ी मां के दर्शन हुए तब चरवाहे ने उस बूढ़ी से कहा, ‘माई मैं आपकी गाय को चराता हूं, इसलिए मुझे पेट के वास्ते कुछ दे दों जिससे में कुछ खा सकू। मैं इसी इच्छा से आपके द्वार आया हूं बूढ़ी माता अंदर गई और लकड़ी के सूप में जौ के दाने उस चरवाहे को दिए और कहा, अब तू इस जंगल में अकेले न आया कर वह बोला, ‘माता मेरा तो काम ही जंगल में गाय चराना है, लेकिन आप इस जंगल में अकेली रहती हैं ? आपको डर नहीं लगता तो बूढ़ी माता ने उस चरवाहे से हंसकर कहा- बेटा यह जंगल, ऊंचे पर्वत-पहाड़ ही मेरा घर हैं, में यही निवास करती हूं इतना कह कर वह गायब हो गई ! चरवाहे ने घर आकर जौ के दाने वाली गठरी खोली, तो हैरान हो गया उसमें जौ की जगह हीरे-मोती चमक रहे थे उसने सोचा- मैं इसका क्या करूंगा सुबह होते ही राजा के दरबार में हाजिर होऊंगा और उन्हें आप बीती सुनाऊंगा दूसरे दिन दरबार में वह चरवाहा अपनी फरियाद लेकर पहुंचा और राजा के सामने पूरी आपबीती सुनाई उस चरवाहे की कहानी सुनकर राजा ने दूसरे दिन वहां जाने का कहकर, अपने महल में सोने चला गया रात में राजा को स्वप्न में चरवाहे द्वारा बताई बूढ़ी माता के दर्शन हुए और आभास हुआ कि यह आदि शक्ति मां शारदा है। स्वप्न में माता ने महाराजा को वहां मूर्ति स्थापित करने का आदेश दिया और कहा कि मेरे दर्शन मात्र से सभी लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण होगी सुबह होते ही राजा ने माता के आदेशानुसार सारे कार्य करवा दिए माता के दर्शनों के लिए श्रद्धालु कोसों दूरे से आने लगे और उनकी मनोवांछित मनोकामना भी पूरी होने लगी इसके बाद माता के भक्तों ने मां शारदा का विशाल मंदिर बनवा दिया।
मैहर वाली शारदा माता के आकर्षण:-( Attraction of Maihar wali sharda mata)
मुख्य पुजारी देवी प्रसाद कहते हैं- जो जीवन का सार देती हैं वो शारदा हैं।
अग्निकुंड में समाईं सती को लेकर जब भगवान शिव जा रहे थे तब ‘मैया का हार’ इस त्रिकुट पर्वत पर गिरा था।
यह 51 शक्तिपीठ में से एक हुआ और नगर का नाम पड़ा मैहर।
मां की तीन बार आरती की जाती है और नौ प्रकार का श्रृंगार किया जाता है।
यहीं मिला था आल्हा को अमरत्व का वरदान कहा जाता है आज भी मंदिर में पहला फूल आल्हा ही चढ़ाते हैं
जब ब्रह्म मुहूर्त में शारदा मंदिर के पट खोले जाते हैं तो पूजा की हुई मिलती है।
मैहर केवल शारदा मंदिर के लिए ही प्रसिद्ध नहीं है बल्कि इसके चारों ओर प्राचीन धरोहरें बिखरी पड़ी हैं।
यहीं एक तालाब और भव्य मंदिर है जिसमें अमरत्व का वरदान प्राप्त आल्हा की तलवार उसी की विशाल प्रतिमा के हाथ में थमाई गई है।
उस्ताद अलाउद्दीन खान एक साधारण व्यक्ति की कहानी है जिसने अपनी महान पोती, संगीत, सहाना के विभिन्न रूपों के माध्यम से भगवान के साथ एकता प्राप्त करने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।
खान मैहर के महाराजा के लिए दरबारी संगीतकार बने। यहाँ उन्होंने कई रागों को विकसित करके एक आधुनिक मैहर घराने की नींव रखी,
सबसे पहले आल्हा करते हैं माता की आरती :
मान्यता है कि मां ने आल्हा को उनकी भक्ति और वीरता से प्रसन्न होकर अमर होने का वरदान दिया था। लोगों की मानेंं तो आज भी रात 8 बजे मंदिर की आरती के बाद साफ-सफाई होती है और फिर मंदिर के सभी कपाट बंद कर दिए जाते हैं। इसके बावजूद जब सुबह मंदिर को पुन: खोला जाता है तो मंदिर में मां की आरती और पूजा किए जाने के सबूत मिलते हैं। आज भी यही मान्यता है कि माता शारदा के दर्शन हर दिन सबसे पहले आल्हा और ऊदल ही करते हैं।
मैहर वाली माताचालीसा श्री शारदा चालीसा | चालीसा संग्रह |(Maihar wali sharda maa chalisa) : चालीसा अपने आप में एक बहुत ही अच्छा माध्यम है माँ को मानाने का। ये शब्द नहीं ये वो भाव है जो भक्तो के दिल की गहराइयों से निकले है। भक्तो के द्वारा गए गए भावो को गाने से माँ जल्दी प्रसन्न होती है। माँ शारदा(मैहर वाली माता )को विद्या के देवी कहा जाता है और अगर ये प्रसन्न हो जाये तो हमारे ज्ञान के रस्ते खुल जाते है।
मैहर वाली शारदा माता मंत्र :-
नवरात्रि में इस मंत्र जप का आरंभ करने और आजीवन इस मंत्र का पाठ करने से विद्या और बुद्धि में वृद्धि होती है।
ॐ शारदा माता ईश्वरी मैं नित सुमरि तोय हाथ जोड़ अरजी करूं विद्या वर दे मोय।’
मां सरस्वती का सुप्रसिद्ध मंदिर मैहर में स्थित है। मैहर की शारदा माता को प्रसन्न करने का मंत्र इस प्रकार है।
शरद काल में उत्पन्न कमल के समान मुखवाली और सब मनोरथों को देने वाली मां शारदा समस्त समृद्धियों के साथ मेरे मुख में सदा निवास करें।
सरस्वती का बीज मंत्र ‘क्लीं’ है। शास्त्रों में क्लींकारी कामरूपिण्यै यानी ‘क्लीं’ काम रूप में पूजनीय है। नीचे दिए गए मंत्र से मनुष्य की वाणी सिद्ध हो जाती है। समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाला यह मंत्र सरस्वती का सबसे दिव्य मंत्र है।
सरस्वती गायत्री मंत्र : ‘ॐ वागदैव्यै च विद्महे कामराजाय धीमहि। तन्नो देवी प्रचोदयात्।’
कहते है इस मंत्र की 5 माला का जाप करने से साक्षात मां सरस्वती(शारदा ) प्रसन्न हो जाती हैं तथा साधक को ज्ञान-विद्या का लाभ प्राप्त होना शुरू हो जाता है। 10 मिनट रोज जाप करने से स्मरण शक्ति बढ़ती है। एक बार अध्ययन करने से कंठस्थ हो जाता है।