एक ऐसी अद्भुत जगह जहां श्री कृष्ण जी पर्वत के रूप विराजमान है
श्री गोवर्धन(Govardhan Hill )महाराज :-
श्री गोवर्धन सिर्फ पर्वत नहीं है ये श्री कृष्ण जी का स्वरुप है जो कलयुग में प्रत्यक्ष है। हर कोई अपनी आँखों से देख सकता है यहाँ आकर एक अद्भुत शांति की प्राप्ति होती है। मथुरा नगर के पश्चिम में लगभग 21 किमी की दूरी पर यह पहाड़ी स्थित है। यहीं पर गिरिराज पर्वत है जो 4 या 5 मील तक फैला हुआ है। इस पर्वत पर अनेक पवित्र स्थल है। पुलस्त्य ऋषि के श्राप के कारण यह पर्वत एक मुट्ठी रोज कम होता जा रहा है। कहते हैं इसी पर्वत को भगवान कृष्ण ने अपनी छोटी अँगुली पर उठा लिया था। गोवर्धन पर्वत को गिरिराज पर्वत(Govardhan Hill )भी कहा जाता है।
श्री गोवर्धन महाराज की भव्यता:-
गोवर्धन पर्वत की वंदना करते हुए इसे वृन्दावन में विराजमान और वृन्दावन की गोद में निवास करने वाला गोलोक का मुकुटमणि कहा गया है।
पौराणिक मान्यता अनुसार श्री गिरिराजजी को पुलस्त्य ऋषि द्रौणाचल पर्वत से ब्रज में लाए थे।
दूसरी मान्यता यह भी है कि जब राम सेतुबंध का कार्य चल रहा था तो हनुमान जी इस पर्वत को उत्तराखंड से ला रहे थे लेकिन तभी देव वाणी हुई की सेतु बंध का कार्य पूर्ण हो गया है तो यह सुनकर हनुमानजी इस पर्वत को ब्रज में स्थापित कर दक्षिण की ओर पुन: लौट गए।
पौराणिक उल्लेखों के अनुसार भगवान कृष्ण के काल में यह अत्यन्त हरा-भरा रमणीक पर्वत था। इसमें अनेक गुफ़ा अथवा कंदराएँ थी और उनसे शीतल जल के अनेक झरने झरा करते थे। उस काल के ब्रज-वासी उसके निकट अपनी गायें चराया करते थे, अतः वे उक्त पर्वत को बड़ी श्रद्धा की द्रष्टि से देखते थे। भगवान श्री कृष्ण ने इन्द्र की परम्परागत पूजा बन्द कर गोवर्धन की पूजा ब्रज में प्रचलित की थी, जो उसकी उपयोगिता के लिये उनकी श्रद्धांजलि थी।
श्री गोवर्धन महाराज सत्य घटना:-
भगवान श्री कृष्ण(shri krishna) की लीलाओं में विशेष लीला वृंदावन(vrindavan) में हुई वह अद्भुत लीला थी जिस लीला के कारण श्री कृष्ण का वह चमत्कार(miracle) देख आज हजारों लाखों लोगों आकर्षित होते हैं भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत(Govardhan Hill )उठा लिया था यह लीला कुछ इस प्रकार घटित हुई कृष्ण बलराम रोज की तरह गायों को चराने गए जब गाय चढ़ाकर भगवान वापस आए तो उन्होंने देखा पूरा का पूरा वृंदावन सभी कुछ विशेष सामग्री पूजा की थाली लेकर नंद बाबा के कहने पर बड़े पूजा की तैयारी कर रहे थे .
श्री कृष्ण छोटे थे वो पूछने अलगे यज्ञ तैयारी और किस लिए वह सवाल करने लगे नंदबाबा से। श्री कृष्ण(Shri krishna) जानते तो सब कुछ थे फिर भी नंद जी से पूछते हैं बाबा यह हम सब किनकी पूजा की तैयारी कर रहे हैं फिर क्या था नंद बाबा ने बालक समझकर कृष्ण को कहा यह तो हम लोग हर साल करते हैं उसी पूजा की तैयारी है। नहीं बाबा मुझे बताइए यह किस भगवान के लिए पूजा(puja) की जा रही है पहले नंद बाबा ने टालने की कोशिश की लेकिन फिर नंद बाबा ने कहा हम लोग इंद्र की पूजा कर रहे हैं क्योंकि इंद्र हमें वर्षा प्रदान करते हैं वर्षा के कारण हमारा खेत अच्छे से फलता-फूलता है कृष्ण जी ने कहा वर्षा तो हर जगह होती है वर्षा होती है तो खेतों पर भी होती है खेतों पर होती है समुद्र में भी होती हर जगह होती है लेकिन सभी लोग तो इंद्र जी की पूजा नहीं करते बारिश तो हर जगह होती है इस प्रकार से तर्क दिया तो नंद बाबा कुछ बोल नहीं पाए उन्होंने कहा कि यह पूजा कई पीढ़ियों से चली आ रही है तो इसीलिए हम भी कर रहे हैं क्या इसका शास्त्रों में वर्णन है यह हम लोग कई पीढ़ियों से करते आ रहे हैं। हम बरसों से बस करते चले आ रहे हैं। श्री कृष्णा जी ने कहा हमें विशाल गोवर्धन की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हम गोवर्धन की पूजा करेंगे तो गोवर्धन ही तो हमारी गायों को भोजन देती है जिससे कि गायों की भरपूर दूध से हम सबकी सेवा होती है। हमें चाहिए कि हम गोवर्धन की पूजा करें। तर्क देने के बाद वास्तव में भगवान श्री कृष्ण लीला के द्वारा यह समझाना चाह रहे हैं देवता तो बहुत सारे हैं मुख्य देवता 33 है लेकिन संख्या में 33 करोड़ देवता हैं सारे पृथ्वी से ऊपर के लोग में रहते हैं एक ब्रह्मांड की 14 लोक है पृथ्वी के नीचे सात लोक हैं भगवान कृष्ण अर्जुन को भगवत गीता में बोलते हैं हे अर्जुन यह जो ब्राह्मण है इसमें जितने लोग हैं चाहे ऊपर जाएं या मृत्यु के पश्चात नीचे जाए इन सब लोगों में दुख है और मृत्यु है और फिर से जन्म होता है यहां तो कई बार हम यह सोचते कि दुखों के कारण अपना घर बदलते बदलते हैं देश बदलते और यह सोचते हैं कि हमारे दुख कम हो जाएगा लेकिन दुख खत्म नहीं होता मानसिक चिंताएं खत्म नहीं होती
श्री कृष्णा ने कहा हमें देवताओं की पूजा नहीं करनी चाहिए हमें कर्म की पूजा करनी चाहिए हमें भगवान की पूजा करनी चाहिए और गोवर्धन पर्वत साक्षात भगवान का स्वरुप है क्योंकि वह हम सभी को छाया प्रदान करते हैं हम सभी के गायो को अन धन प्रदान करते हैं इसीलिए हम सभी को गोवर्धन महाराज के शरण में जाना चाहिए वह हम सब की पूजा जरूर स्वीकार करेंगे बस इतना ही सुनना था नंद बाबा ने कन्हैया की बात मान ली और सभी ग्वाल-बाल गैया मैया सभी को साथ लेकर सब बड़ी ही मस्त से होकर गोवर्धन महाराज की पूजा करने गए उन्होंने छप्पन भोग गोवर्धन महाराज को लगाया और खूब खूब अच्छे से उनकी पूजा सेवा की बस इतना देखते ही इंद्र देवता क्रोधित हो गए और उन्होंने बहुत ही मूसलाधार बारिश कि जिससे कि पूरा ब्रज गांव में जल ही जल हो गया था पूरा ब्रज गांव डूबने लगा था.
तब सभी कहने लगे कन्हैया अब हम क्या करें हमें कौन बचाएगा तुमने ही कहा था इंद्र की पूजा मत करो अब इंद्र जी हम लोगो से क्रोधित हो गए हम कैसे उन्हें शांत करें।
तो श्री कृष्ण जी ने कहा नंद बाबा हमें डरने की जरूरत नहीं हमने गोवर्धन भगवान की पूजा की है तो हमें सिर्फ अब उनकी शरण में जाना चाहिए
तो सभी गोवर्धन पर्वत के अंदर प्रवेश करने लगे। गुफा में जगह कम होने के कारण सभी अंदर न जा सके ग्वाल बाल गाय सब बाहर खड़े थे
तो देखते ही देखते श्री कृष्ण भगवान ने अपने कनिष्ठ उंगली पर श्री गोवर्धन महाराज को उठा लिया और सभी को कहा इस के अंदर आ जाओ पूरा ब्रज लोक पूरे बृजवासी सभी गोवर्धन के नीचे आ गए और जिससे उनकी रक्षा हो गई.
सब देख कर इंद्र देवता को लगा :- कि उन्होंने कुछ गलत किया है तो वह कृष्ण भगवान से क्षमा मांगने लगे ऐसा नहीं करना चाहिए तभी उनका नाम गोविंद नाम पड़ा गोवर्धनधारी नाम पड़ा। श्री. कृष्ण कहते हैं जब हमें अपने दुखों के पहाड ना उठे तो एक बार सच्चे मन से जो उनकी शरण में जाए तो वो सभी के दुखों का पहाड़ जरूर उठाएंगे पर विश्वास और श्रद्धा होना चाहिए। जैसे ब्रजवासी सीधा गोवर्धन भगवान की शरण में ही गए। श्री कृष्ण जी के ऊपर अपनी श्रद्धा भाव दिखाया आंख बंद करके उनके शरण में चले गए इस प्रकार आज भी गोवर्धन पर्वत हम सभी की इच्छाओं को पूरा करते हैं श्रद्धा और भक्ति भावना चाहिए। आज बहुत से लोगों की श्रद्धा गोवर्धन महाराज से जुड़ी हुई है हर महीने लोग यहां पर परिक्रमा के लिए आते हैं और अपने दुखों को बांटते हैं और उनको दुख कम करने का वर मांगते है और उनकी इच्छाएं पूरी होती है कलयुग में साक्षात प्रकट है श्री कृष्ण जी का स्वरुप। श्री. गोवर्धन महाराज की जय हो जय हो श्री गोवर्धन महाराज महाराज नित्य आया करो।