पुरी का श्री जगन्नाथ मंदिर (jagannathpuri temple) जो भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण) को समर्पित है। जगन्नाथ शब्द का अर्थ जगत के स्वामी होता है। इस मंदिर को हिन्दुओं के चार धाम में से एक गिना जाता है। यह वैष्णव सम्प्रदाय का मंदिर है, जो भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है। कहते हैं जगन्नाथपुरी एक इकलौता ऐसा मंदिर है जिसमें श्री कृष्ण भगवान अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ विराजित हैं यह अपने आप में ही एक अद्भुत दृश्य है ।
हे जगन्नाथ प्रभु एक झलक आपकी वो बिसरत नहीं चाह फिर से देखु तुम्हे मन से ये चाह जाती नहीं।
पुरी की सबसे खास बात तो स्वयं भगवान जगन्नाथ हैं जिनका अनोखा रूप कहीं अन्य स्थान पर देखने को नहीं मिलता है। नीम की लकड़ी से बना इनका विग्रह अपने आप में अद्भुत है जिसके बारे में कहा जाता है कि यह एक खोल मात्र है। इसके अंदर स्वयं भगवान श्री कृष्ण मौजूद होते हैं।
(2) हवा के विपरीत दिशा में:-
जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर लहराता झंडा हमेशा हवा के विपरीत दिशा में रहता है।
(3) सुदर्शन चक्र :-
जगन्नाथ पुरी मंदिर की सबसे खास बात मंदिर के सबसे ऊपर लगा सुदर्शन चक्र को आप जिस भी तरफ से देखेंगे वह आपको अपनी तरफ ही दिखाई देगा यह अपने आप में ही अद्भुत है
(5) महाप्रसाद:-
यह है जगन्नाथ जी का महाप्रसाद। मंदिर में प्रसाद बनाने के लिए सात बर्तन एक दूसरे पर रखा जाते हैं। और प्रसाद लकड़ी जलाकर पकाया जाता है। इस प्रक्रिया में लेकिन सबसे ऊपर के बर्तन का प्रसाद पहले पकता है।
(6) हवाओं में चमत्कार
समुद्र तट पर दिन में हवा जमीन की तरफ आती है, और शाम के समय इसके विपरीत, लेकिन पुरी में हवा दिन में समुद्र की ओर और रात को मंदिर की ओर बहती है।
(8) मुख्य गुंबद की छाया किसी भी समय जमीन पर नहीं पड़ती। (9) मंदिर में कुछ हजार लोगों से लेकर 20 लाख लोग भोजन करते हैं। फिर भी अन्न की कमी नहीं पड़ती है। हर समय पूरे वर्ष के लिए भंडार भरपूर रहता है। (10) एक पुजारी मंदिर के 45 मंजिला शिखर पर स्थित झंडे को रोज बदलता है। ऐसी मान्यता है कि अगर एक दिन भी झंडा नहीं बदला गया तो मंदिर 18 वर्षों के लिए बंद हो जाएगा। (11) मन्दिर का रसोई घर दुनिया का सबसे बड़ा रसोइ घर है। विशाल रसोई घर में भगवान जगन्नाथ को चढ़ाने वाले महाप्रसाद को बनाने 500 रसोईये एवं 300 उनके सहयोगी काम करते है। (12) सिंहद्वार में प्रवेश करने पर आप सागर की लहरों की आवाज को नहीं सुन सकते। लेकिन कदम भर बाहर आते ही लहरों का संगीत कानों में पड़ने लगता है।