रामानुज सम्प्रदाय

रामानुज सम्प्रदाय

Average Reviews

Description

श्री सम्प्रदाय अति प्राचीन नाम है लेकिन अब इस संप्रदाय को इसके प्रमुख आचार्य के नाम से जाना जाता है। रामानुज सम्प्रदाय . वर्तमान में वैष्णव संप्रदाय के चारो संप्रदाय ये सभी संप्रदाय अपने प्रमुख आचार्यो के नाम से जाने जाते हैं। रामान्दाचार्य जी ने सर्व धर्म समभाव की भावना को बल देते हुए कबीर, रहीम सभी वर्णों (जाति) के व्यक्तियों को भक्ति का उपदेश किया। आगे रामानन्द संम्प्रदाय में गोस्वामी तुलसीदास हुए जिन्होने श्री रामचरितमानस की रचना करके जनसामान्य तक भगवत महिमा को पहुँचाया। इसमें श्री राम जी की पूजा होती है।

प्राचीन नाम

श्री सम्प्रदाय

वर्तमान नाम

रामानुज सम्प्रदाय

जनक और आचार्य

महालक्ष्मीदेवी – आचार्य रामानुजाचार्य

रामानुज सम्प्रदाय(श्री सम्प्रदाय)क्या है ?

श्री सम्प्रदाय (रामानुज सम्प्रदाय) हिन्दू धर्म के अन्दर वैष्णव के चार सम्प्रदायों में से एक है। यह शास्त्रीय मत हैं कि इसकी उत्पत्ति लक्ष्मीनाथ एवं श्रीमहालक्ष्मी जी की ईच्छा से हुई है। श्री विष्णु जी श्री निवास है। इससे ज्ञात होता है कि महालक्ष्मी और श्री विष्णु एक ही है। इस सम्प्रदाय में श्री शब्द का प्रयोग किया गया है। यह शब्द श्रीदेवी और महालक्ष्मी के लिए आता है। श्रीदेवी भगवान् विष्णु और मनुष्य के बीच मध्यस्थ है। विष्णुप्रिया महालक्ष्मी भक्त, भक्ति, भगवन्त, गुरु चारों को जोड़ती है। जीव को शरणागति कराकर तीनों दु:खों से मुक्ति कर देती है।

इस दिव्य परम्परा में दिव्य सोच एवं विशिष्ट ऐतिहासिक महत्व है। श्री सम्प्रदाय विशिष्टाद्वैत की दार्शनिक व्यवस्था में विश्वास करती है। स्वामी रामानुजाचार्य श्रीमन्नारायण से लेकर संसार के मानवों के बीच तक माला के सुमेर स्थान में वर्तमान है। 

लक्ष्मीनाथसमारम्भां नाथयामुनमध्यमाम्।
अस्मदाचार्यपर्यन्तां वन्दे गुरुपरम्पराम् ।।

श्री सम्प्रदाय’ ही सबसे पुरातन है। इसके अनुयायी ‘श्री वैष्णव’ कहलाते हैं। इन अनुयायियों की मान्यता है कि भगवान् । नारायण ने अपनी शक्ति श्री (लक्ष्मी) को अध्यात्म ज्ञान प्रदान किया। तदुपरांत लक्ष्मी ने वही अध्यात्मज्ञान विष्वक्सेन को और विष्क्सेन ने नम्माळवार को दिया। इसी आचार्य-परम्परा से कालांतर में रामानुज ने वह अध्यात्मज्ञान प्राप्त किया। इसके फलस्वरूप श्री रामानुज ने ‘श्री वैष्णव’ मत को प्रतिष्ठापितकर इसका प्रचार किया।

12 प्रमुख शिष्य:-

स्वामी श्रीरामानंदाचार्यजी के कुल 12प्रमुख शिष्य थे:- 1.संत श्रीअनंतानंदजी, 2.संत श्रीसुखानंदजी, 3.संत श्रीसुरासुरानंदजी, 4.संत श्रीनरहरीयानंदजी, 5.संत श्रीयोगानंदजी, 6.संत श्रीपिपानंदजी, 7.संत श्रीकबीरदासजी, 8.संत श्रीसेजान्हावीजी, 9.संत श्रीधन्नादासजी, 10.संत श्रीरविदासजी, 11.संत श्रीपद्मावतीजी और 12. संत श्रीसुरसरीजी ।।

विद्धवानों के अनुसार स्वामी श्रीरामानंदाचार्यजी की दो प्रकार की शिष्य-परम्पराएँ थीं। भक्ति का प्रचार करने वाले भक्त-कवियों में एक के प्रतिनिधि संत श्रीकबीरदासजी और दूसरी के संत श्रीतुलसीदास हुए। 

चतुः सम्प्रदाय 52द्धारा :-

यद्यपी श्रीवैष्णव सम्प्रदाय को स्वामी श्रीरामानन्दाचार्यजी ने नई पहचान प्रदान की है। उसीके तहत चतुः सम्प्रदाय 52द्धारा गोत्र प्रचलन में आए। अत एव श्रीवैष्णव सम्प्रदाय में स्वामी श्रीरामानंदाचार्यजी द्वारा स्थापित धार्मिक परम्पराओं का पालन किया जाता है। इससे पूर्व शेव एवं वैष्णव मतावलंबियों के बीच अपनी अपनी धार्मिक परम्पराओं को लेकर कई बार हिंसक विवाद भी हुए हैं। इस कड़े संघर्ष का व्यापक इतिहास रहा है।

बताया जाता है स्वामी श्रीरामानंदाचार्यजी बहुत बड़े क्रान्तीकारी विचारों के सन्त थे। जिन्होंने वर्ण व्यवस्था से परे भेदभाव रहित सर्वजनहितकारी श्रीवैष्णव सम्प्रदाय अन्तर्गत सर्वजनसुलभ उपासना पद्धति एवं नई परम्पराओं को अंगीकार किया। युगल ईष्टदेव आराधना, गुरुपरम्परा, राममंत्र, श्रीविष्णु तिलक, सिरपर चुटिया, तुलसीमाला, कंठीधारण, पित्र पादुका स्थापन सहित वैष्णवीय तीथियों, वृतोपवास उत्सव करने जैसे कई बड़े बदलाव हुए।

संप्रदाय कितने प्रकार के होते है ?

रामानंदी संप्रदाय :-

श्री(रामानुज) संप्रदाय के अंतर्गत रामानंदी संप्रदाय जिसके प्रवर्तक आचार्य श्रीरामानंदाचार्य हुए । रामान्दाचार्य जी ने सर्व धर्म समभाव की भावना को बल देते हुए कबीर, रहीम सभी वर्णों (जाति) के व्यक्तियों को भक्ति का उपदेश किया। आगे रामानन्द संम्प्रदाय में गोस्वामी तुलसीदास हुए जिन्होने श्री रामचरितमानस की रचना करके जनसामान्य तक भगवत महिमा को पहुँचाया। उनकी अन्य रचनाएँ – विनय पत्रिका, दोहावली, गीतावली, बरवै रामायण एक ज्योतिष ग्रन्थ रामाज्ञा प्रश्नावली का भी निर्माण किया। मध्यकालीन वैष्णव आचार्यों ने भक्ति के लिए सभी वर्ण और जाति के लिए मार्ग खोला, परंतु रामानंदाचार्य वर्ण व्यवस्था अनुरूप दो अलग अलग परंपरा चलायी जय हरी वैष्णव धर्म के अंदर भक्ति का प्रमुख स्थान है।

नोट : अगर आप कुछ और जानते है तो सुझाव और संशोधन आमंत्रित है। please inbox us.