संप्रदाय(Sampradaya)

संप्रदाय(Sampradaya)

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आपने कितने ही बार संप्रदाय(sampradaya) के बारे में सुना होगा। युवा पीढ़ी इस बात को लेकर बहुत ही ज्यादा असमंजस में रहती है। और उनका असमंजस में रहना जायज भी है क्युकी हमारी युवा पीढ़ियों को इसके बारे में नहीं बताया जाता। जिसे धीरे धीरे विश्वास की कमी के कारण हमारी संस्कृति कही पीछे छूट जाती है। संस्कृति का विस्तार जभी हो पायेगा जब हमारे बड़े हमारे पूर्वजो की सिख और ज्ञान को युवाओ तक पहुचाएंगे। सनातन धर्म विश्व के सभी बड़े धर्मों में सबसे प्राचीन धर्म है अस्तु इसे ‘वैदिक धर्म’ भी कहा जाता है. सम्प्रदाय एक शाखा के अंदर एक स्थापित शांत अनुभाव को संदर्भित(Referenced) करता है। और परम्परा किसी भी सम्प्रदाय के गुरु के पारंपरिक वंश को संदर्भित करता है।

संप्रदाय क्या है ?(sampradaya kya hai):-

परंपरा से चला आया हुआ सिद्धांत या मत। संप्रदाय को एक ‘परंपरा’, ‘आध्यात्मिक वंश’ या ‘धार्मिक क्रम’ के रूप में समझा जा सकता है। संप्रदाय के अन्तर्गत गुरु-शिष्य परम्परा चलती है जो गुरु द्वारा स्थापित परम्परा को पुष्ट करती है। सम्प्रदाय कोई भी हो सबकी खोज उस परम सत्य की है। बस रास्ते अलग और उसे मानाने का ढंग अलग है।

संप्रदाय कितने प्रकार के होते है ?

ग्रन्थ में दो मूल संप्रदाय का वर्णन है। शैव और वैष्णव . संप्रदाय(sampradaya) पांच प्रकार के होते है। हिंदू धर्म की सभी विचारधारा या संप्रदाय वेद से निकले हैं। वेदों में ईश्वर, परमेश्वर या ब्रह्म को ही सर्वोच्च शक्ति माना गया है।

शैवाश्च वैष्णवाश्चैव शाक्ताः सौरास्तथैव च | गाणपत्याश्च ह्यागामाः प्रणीताःशंकरेण तु || -देवीभागवत ७ स्कन्द ( वैष्णव जो विष्णु को ही परमेश्वर मानते हैं, शैव जो शिव को परमेश्वर ही मानते हैं, शाक्त जो देवी को ही परमशक्ति मानते हैं और स्मार्त जो परमेश्वर के विभिन्न रूपों को एक ही समान मानते हैं। अंत में वे लोग जो ब्रह्म को निराकार रूप जानकर उसे ही सर्वोपरि मानते हैं। )

  1. शैव सम्प्रदाय (Shaivism sampradaya)
  2. वैष्णव सम्प्रदाय (Vaishnavism sampradaya)
  3. शाक्त सम्प्रदाय (Shaktism sampradaya
  4.  सौर (स्मार्त) सम्प्रदाय (
  5.  गाणपत सम्प्रदाय

गुरु – शिष्यों- दीक्षा :-

संप्रदाय शिष्यों के एक उत्तराधिकार से संबंधित है जो एक ऐसी परंपरा स्थापित करता है जो “संप्रदाय” स्थिरता प्रदान करती है। इसके विपरीत, एक विशेष गुरु वंश को परम्परा कहा जाता है और एक वर्त्तमान गुरु के परम्परा में एक दीक्षा (दीक्षा) प्राप्त करके, व्यक्ति अपने उचित सम्प्रदाय के अंतर्गत आता है।

दीक्षा-सम्प्रदाय:-

दीक्षा एक साधन है जिसके द्वारा व्यक्ति सम्प्रदाय का सदस्य बन सकता है। यह एक अनुष्ठान प्रक्रिया है, सम्प्रदाय के प्राथमिक कार्यों में से एक है। कोई जन्म से सदस्य नहीं बन सकता है, जैसा कि गोत्र, एक मदरसा, या वंशानुगत, राजवंश के साथ होता है।

संप्रदाय अनुयायियों की प्रत्येक क्रमिक पीढ़ी द्वारा वंश परंपरा , विचार और दृष्टिकोण, संचारित, पुनर्परिभाषित और समीक्षा की एक संस्था है। संप्रदाय में भागीदारी अतीत, या परंपरा के साथ निरंतरता को बल देती है, लेकिन साथ ही इस विशेष पारंपरिक समूह के लोगो को समुदाय के भीतर से परिवर्तन के लिए एक मंच प्रदान करती है

मजबूत विश्वास :-

सभी हिन्दू सम्प्रदाय की ये खूबी है की कोई भी दूसरे सम्प्रदाय के खिलाफ नहीं होता। एक मजबूत विश्वास मौजूद है वो जानते है रास्ते और तरीके अलग है लेकिन है वो सभी एक ही ईश्वर, परम सत्य को पुकारने की तरफ अग्रसर है। और सभी एक दूसरे के दृष्टिकोण का सामान करते है और एक दूसरे की अच्छाइयों को अपनाते है।

इसने हिंदू धर्म की जीवन शक्ति को जन्म दिया है। इस भावना के साथ कि हिंदू धर्म के सभी संप्रदाय एक-दूसरे के पूरक हैं, हिंदू धर्म में तीन गुना ताकत है। सबसे पहले, भगवान की कई अभिव्यक्तियों का संयोजन। दूसरा, एक सर्वोच्च ईश्वर, ब्राह्मण में एक विश्वास। और तीसरा, योग की गहन आध्यात्मिक साधना जो मानव आध्यात्मिकता के चार आवश्यक आयामों को स्वीकार करती है: भक्ति (भक्ति), सत्य या बुद्धि (ज्ञान), इच्छा (कर्म), और भौतिक (राजा)। वर्तमान में कितने ही सम्प्रदाय हैं कुछ चमत्कार दिखाते हुए कैसे और कब संत बन जाता है और अपनी नयी शाखा एक विद्यालय की भाँति शुरू कर देता है और संप्रदाय बना लेता है ग्रन्थ में दो मूल संप्रदाय का वर्णन है। शैव और वैष्णव

बाकि आप अपनी समझ के अनुसार किसी का भी अनुसरण कर सकते है उसकी आज़ादी है। जो आपको दिल से परम सत्य से जोड़े।

नोट : अगर आप कुछ और जानते है तो सुझाव और संशोधन आमंत्रित है। please inbox us.