श्री गणेश के हर अंग हमें देते हैं कुछ सीख-lord ganesha lesson
श्री गणेश जी (Lord Ganesha ) की पूजा अर्चना के साथ हमें उनसे काफी कुछ सीखने को भी मिलता है। ये सभी जानते है श्री गणेश जी को बुद्धि के देवता महागणेश मंगलमूर्ति कहा जाता है।क्योंकि इनके सभी अंग जीवन को सही दिशा में अग्रसर होने के लिए सिख देते हैं। गणेश जी समृद्धि के देवता विघ्नहर्ता के रूप में पूजे जाते हैं। किसी भी शुभ काम की शुरुआत करने से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है। ठीक उसी तरह गजानन के हर अंग में समृद्धि और ज्ञान का संदेश देता है।
गणेश चतुर्थी के दिन गजमुख को प्रसन्न करने के लिए जो लोग भक्तिपूर्वक गणेश की पूजा करते हैं, उनके विघ्नों का सदा के लिए नाश होता है और कार्यसिद्धि होती रहती हैं। श्री गणेश के स्वरूप से मिलती है क्या खास शिक्षा
श्री गणेश जी का बड़ा मस्तक:-
ये माना जाता है कि बड़े सिर वाले व्यक्ति में नेतृत्व की क्षमता होती है। श्री गणेश का बड़ा सिर भी यही ज्ञान देता है। अर्थात हमें अपनी सोच को बड़ा रखना चाहिए। क्युकी महान कार्य करने लिए सोच का बड़ा होना बहुत जरुरी है।
श्री गणेश जी की छोटी आंखें:-
कहते है जिनकी आंखें छोटी होती है, वैसे लोग चिंतनशील और गंभीर प्रकृति के होते है। भगवान गणेश की छोटी आंखे ये सीख देती है कि हर चीज को देख-परख कर ही निर्णय लेना चाहिए। माना जाता है कि ऐसा करने वाला व्यक्ति कभी धोखा नहीं खाता है। जो जीवन में सूक्ष्म लेकिन तीक्ष्ण दृष्टि रखने की प्रेरणा देती हैं।
श्री गणेश जी के लंबे कान:-
कहते है लंबे कान वाले व्यक्ति बहुत ही भाग्यशाली और दीर्घायु होते हैं। भगवान श्री गणेश के लंबे कानों एक रहस्य यह भी हैं कि जिनके कान लंबे होते हैं, वे सबकी सुनते हैं फिर अपनी बुद्धि और विवेक से ही निर्णय लेते हैं।
श्री गणेश जी की सूंड़:-
कहते है भगवान श्री गणेश की सूंड जीवन में सदैव सक्रिय रहने का संदेश देती है। कहा जाता है जो लोग ऐसा करते हैं उन्हें कभी गरीबी का सामना नहीं करना पड़ता है।
श्री गणेश जी का बड़ा पेट:-
श्री गणेश जी का उदर यानि पेट बहुत बड़ा है। बड़ा पेट खुशहाली का प्रतीक माना जाता है। बड़ा पेट मतलब कोई मोटापे से नहीं है। भगवान गणेश का बड़ा पेट हमें सीख देता है कि भोजन के साथ हमें बातों को भी पचाना चाहिए।
श्री गणेश जी का एकदंत:-
भगवान गणेश जी अपने टूटे दांत से यह सीख देते हैं कि किस प्रकार चीजों का सदुपयोग करना चाहिए। गणेशजी के दो दांत हैं एक अखंड और दूसरा खंडित। अखंड दांत श्रद्धा का प्रतीक है यानि श्रद्धा हमेशा बनाए रखनी चाहिए। खंडित दांत है बुद्धि का प्रतीक इसका तात्पर्य एक बार बुद्धि भ्रमित हो, लेकिन श्रद्धा न डगमगाए।
श्री वेदव्यास जी जब श्री गणेश जी से महाभारत लिखवा रहे थे। तब उनकी लेखनी टूट गयी थी और उनके पास कोई लेखनी नहीं थी। और श्री वेदव्यास जी महाभारत के श्लोक बोलते जा रहे थे। इसलिए उन्होंने बिना रुके कुछ भी नहीं सोचा अपने एक दांत को तोड़ करके लेखनी बना ली। ये बहुत बड़ा उनका त्याग था। जिस कारन उनको एकदन्त कहा जाने लगा।
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अब आप ही सोचिये, यदि एक व्यक्ति हमें इतनी सीख दे सकता है, उसकी जिंदगी भी हमें इतना प्रभावित कर सकती है तो सोचिये भगवान की जिंदगी हमें क्या कुछ नहीं सिखाएगी
आपके पास जो है उसे ही उपयोगी बनाएं:-
यह तब की बात है जब मां पार्वती और भगवान शंकर ने अपने दोनों पुत्रों कार्तिक व गणेश की परीक्षा लेने का निर्णय लिया. दोनों ने अपने पुत्रों को दुनिया का तीन बार चक्कर लगाने को कहा और विजेता को इनाम के रूप में सबसे स्वादिष्ट फल देने का वादा किया.
यह सुनकर कार्तिक अपने मोर पर बैठकर दुनिया का भ्रमण करने निकल गए लेकिन दूसरी ओर भगवान गणेश ने अपने माता पिता के ही चारों ओर चक्कर लगाना शुरु कर दिया. जब उनसे इस बात का कारण पूछा गया तो वे बोले कि उनका संसार स्वयं उनके माता पिता हैं, तो वे समस्त संसार का भ्रमण क्यों करें?
सीख: इस कथा से हमें यह सीख मिलती है कि हमारे पास जो भी उपस्थित चीजें हैं हमें उनमें से सबसे मूल्यवान को चुनकर उसे उपयोगी बनाना चाहिए ना कि बिना कुछ सोचे समझे जो चीज हमारे पास ना हो उसके लिए विलाप करना चाहिए. इसके अलावा यह कथा हमें अपने माता पिता को सबसे उच्च मानने की सीख भी देती है.
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