राधा कृष्ण प्रेम गीत और राधा कृष्ण प्रेम संवाद
प्यार भरा राधा कृष्ण प्रेम संवाद:-
श्री राधे श्री कृष्ण की साक्षात् ह्रदय है। और राधा -कृष्ण का संवाद में बहुत गहराई है। उसे शब्दों में समझा पाना उतना आसान नहीं है।ये बात उस समय की है जब महाभारत के बाद श्री कृष्ण द्वारिका लौटे थे। वो बहुत उदास रहने लगे रुक्मणी ,सत्यभामा आदि सभी रानियों ने उनकी उदासी का कारन पूछा लेकिन कृष्ण नहीं बोले। रुक्मणी जी समझ गईं की कृष्ण के मन में अनंत वेदना है।
और उस वेदना का एक मात्र उपाय श्री राधाजी हैं। उन्होंने मुस्कुराते हुए कृष्ण से पूछा क्यों न राधा को कुछ दिन मेहमानी के लिए यंहा बुला लिया जाए। कृष्ण रुक्मणी की और कृतज्ञता से मुड़े और हल्की सी मुस्कराहट में अपनी स्वीकृति देते हुए वह से चले गए। रुक्मणी जी के आमंत्रण पर राधाजी द्वारका आईं यह संवाद उसी समय का है।
श्री राधा जी का प्रश्न:-
कितने वर्षों बाद द्वारकाधीश आज ये घडी आयी है ।
स्वर्ग सजे महलों में कैसे तुमको राधा याद आयी है।
कृष्ण की मनुहार
मत कहो द्वारकाधीश मैं तो तुम्हारा कान्हा हूँ।
क्यों समझ रही हो मुझे पराया मैं तो जाना माना हूँ।
जब से बिछुड़ा तुम सब से हे राधे मुझे विश्रांति नहीं।
हर दम दौड़ा भागा हूँ राधे मुझे किंचित शांति नहीं।
राधा के उल्हाने
क्यों होगी शांति तुम्हे कान्हा जब से तुम द्वारकाधीश बने।
गोकुल वृन्दावन को विसरा राजनीति के आधीश बने।
वंशी भूले ,यमुना भूले ,भूले गोकुल के ग्वालों को।
प्रेम पगी राधा भूले भूले ब्रज के मतवालो को।
अब बहुत दूर जाकर बोलो कान्हा कैसे लौटोगे।
जो दर्द दिया ब्रज वनिताओं को बोलो कैसे मेटोगे।
एक समय था उठा गोवर्धन ब्रजमंडल की तुमने रक्षा की थी।
एक समय था अर्जुन को गीता में लड़ने की शिक्षा दी थी।
एक समय था ब्रज मंडल में तुम सबके प्यारे प्यारे थे।
एक समय था जब हम सब तुम पर वारे वारे थे।
कैसे कृष्ण महाभारत का कोई हिस्सा हो सकता है ?
कैसे कृष्ण प्रेम के बदले युद्ध ज्ञान को दे सकता है ?
प्रेम शून्य होकर अब क्यों तुम प्रेम जगाने आये हो।
भूल चुके तुम जिन गलियों को क्यों अपनाने आये हो।
मैं तो प्रेम पगी जोगन सी सदा तुम्हारे साथ प्रिये।
तुम विसराओ या रूठ के जाओ मैं बोलूंगी सत्य प्रिये।
कृष्ण का दर्द:-
सत्य कहा प्रिय राधे तुमने मैंने जीवन मूल्यों को त्यागा है।
लेकिन न किंचित सुख में रहा ये कान्हा तुम्हारा अभागा है।
विषम परिस्थितियों ने मुझ कान्हा को कूटनीति है सिखलाई।
पर तुम्हारे इस प्रिय अबोध को राजनीति कभी नहीं भाईं।
लेकिन न किंचित सुख पाया इन भव्य स्वर्ग से महलों में।
बिसर न पाया वह सुख जो मिला था गोकुल की गलियों में।
भूला नहीं आज तक हूँ मैं वह आनंदित रास प्रिये।
जीवन की आपा धापी में वे यादें सुगन्धित पास प्रिये।
नन्द यशोदा और ब्रज वालों का ऋण कैसे चुका पाऊंगा ?
कौन सा मुख लेकर अब उनके सम्मुख मैं जाऊंगा ?
कई बार छोड़ कर राजपाट आने का मन करता है।
लेकिन कर्तव्यों के पालन में सौ बार ये मन मरता है।
मेरी विषम विवशताओं का आज आंकलन तुम करो प्रिये।
अपराध बोध से ग्रसित इस ह्रदय दंश को तुम हरो प्रिये।
राधा का प्रेम लेपन:-
कान्हा से तुम कृष्ण बने फिर तुम बने द्वारकाधीश।
भक्तों के तुम भगवन प्यारे मेरे हो आधीश।
इस अपराध बोध से निकलो तुम सबके प्रिय हो बनवारी।
भक्तों के तुम तारण कर्ता राधा तुम पर वारि वारि।
सौ जन्मों के वियोग को सह लूंगी कान्हा प्यारे।
एक पल तेरा संग मिले जो मेरे हों बारे न्यारे।
श्री कृष्णा ने कहा :-
सच कहूँ राधा जब जब भी तुम्हारी याद आती थी इन आँखों से आँसुओं की बुँदे निकल आती थी।
श्री राधा जी बोली :-
“मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ . ना तुम्हारी याद आई ना कोई आंसू बहा . क्यूंकि हम तुम्हे कभी भूले ही कहाँ थे जो तुम याद आते . इन आँखों में सदा तुम रहते थे . कहीं आँसुओं के साथ निकल ना जाओ इसलिए रोते भी नहीं थे. प्रेम के अलग होने पर तुमने क्या खोया इसका एक आइना दिखाऊं आपको ?कुछ कडवे सच ,प्रश्न सुन पाओ तो सुनाऊ ? कभी सोचा इस तरक्की में तुम कितने पिछड़ गए .
- यमुना के मीठे पानी से जिंदगी शुरू की और समुन्द्र के खारे पानी तक पहुच गए ?
- एक ऊँगली पर चलने वाले सुदर्शन चक्र पर भरोसा कर लिया और दसों उँगलियों पर चलने वाळी बांसुरी को भूल गए ?
- कान्हा जब तुम प्रेम से जुड़े थे तो ….जो ऊँगली गोवर्धन पर्वत उठाकर लोगों को विनाश से बचाती थी
- प्रेम से अलग होने पर वही ऊँगली क्या क्या रंग दिखाने लगी ?
- सुदर्शन चक्र उठाकर विनाश के काम आने लगी .
- कान्हा और द्वारकाधीश में क्या फर्क होता है बताऊँ ‘
- कान्हा होते तो तुम सुदामा के घर जाते सुदामा तुम्हारे घर नहीं आता
- युद्ध में और प्रेम में यही तो फर्क होता है युद्ध में आप मिटाकर जीतते हैं, और प्रेम में आप मिटकर जीतते हैं.
- कान्हा प्रेम में डूबा हुआ आदमी दुखी तो रह सकता है पर किसी को दुःख नहीं देता
आप तो कई कलाओं के स्वामी हो स्वप्न दूर द्रष्टा होगीता जैसे ग्रन्थ के दाता हो.
पर आपने क्या निर्णय किया। अपनी पूरी सेना कौरवों को सौंप दी? और अपने आपको पांडवों के साथ कर लिया। सेना तो आपकी प्रजा थी। राजा तो पालाक होता है। उसका रक्षक होता है।
आप जैसा महा ज्ञानी उस रथ को चला रहा था जिस पर बैठा अर्जुन आपकी प्रजा को ही मार रहा था। आपनी प्रजा को मरते देख आप में करूणा नहीं जगी क्यूंकि आप प्रेम से शून्य हो चुके थे।
आज भी धरती पर जाकर देखो. अपनी द्वारकाधीश वाली छवि को ढूंढते रह जाओगे। हर घर हर मंदिर में मेरे साथ ही खड़े नजर आओगे। आज भी मै मानती हूँ लोग गीता के ज्ञान की बात करते हैं , उनके महत्व की बात करते है , मगर धरती के लोग , युद्ध वाले द्वारकाधीश पर नहीं प्रेम वाले कान्हा पर भरोसा करते हैं। गीता में मेरा दूर दूर तक नाम भी नहीं है। पर आज भी लोग उसके समापन पर” राधे राधे” करते हैं।
राधा कृष्ण प्रेम गीत:-
राधा कृष्ण प्रेम कविता TUM PREM HO TUM PREET HO LYRICS IN HINDI
तुम प्रेम हो तुम प्रीत हो मेरी बांसुरी का गीत हो,
तुम प्रेम हो तुम प्रीत हो मन मीत हो मेरी राधे,
तुम प्रेम हो तुम प्रीत हो मेरी बांसुरी का गीत हो
हु मैं यहाँ तुम हो वहा राधा,
तुम बिन नही है कुछ यहा
मुझमे धडकती हो तुम्ही तुम दूर मुझसे हो कहा
तुम प्रेम हो तुम प्रीत हो ….
परमात्मा का स्पर्श हो
पुलकित ह्रदय का हर्ष हो
तुम हो समपर्ण का शिखर
तुम ही मेरा उत्कर्श हो
तुम प्रेम हो तुम प्रीत हो ….
हु मैं यहाँ तुम हो वहा राधा,
तुम बिन नही है कुछ यहाँ
मुझमे धडकती हो तुम्ही
तुम दूर मुझसे हो कहा
तुम प्रेम हो तुम प्रीत हो ….
परमात्मा का स्पर्श हो
पुलकित ह्रदय का हर्ष हो
तुम हो समपर्ण का शिखर
तुम ही मेरा उत्कर्श हो
तुम प्रेम हो तुम प्रीत हो ….
Krishna He Vistar Yadi To Lyrics | Radhakrishna
कृष्ण हे विस्तार यदि तो सार हे राधा
कृष्ण की हर बात का आधार हे राधा
राधा बिना कृष्ण नहीं
कृष्ण बिना नहीं राधा
जिस कण में राधा बसी
उस कण में बसे हे कृष्ण सदा से
राधा राधा राधा राधा
कृष्ण कृष्ण कृष्ण
तुम बिना में कुछ नहीं हूँ राधिके प्रिया
जो भी था मेरा मेरा समर्पित तुमको कर दिया
तुम मुझसे दूर नहीं
मुजमे तुम समायी हो
में हु अगर काया तो
तुम मेरी पदछायी हो ओ राधे…
क्यों भला घडी विरह की आज हे आयी
कैसे दूर रहे सकेगी तन से पदछायी
सागर से लेहेर भला कैसे अलग रेह पाएंगी
कृष्ण से जो दुरी हो राधा कहां सेह पायेगी
ओ कृष्ण …
राधा राधा राधा राधा
कृष्ण कृष्ण कृष्ण
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