हिंदी में श्री एकदंत गणेश जी के बारे में जाने-कथा
भगवान् श्री गणेश के दूसरे अवतार एकदंत के सम्बन्ध में एक श्लोक मिलता है जो इस प्रकार है –
एकदन्तावतारौ वै देहिनां ब्रह्मधारकः |
मदासुरस्य हन्ता स आखुवाहनगः स्मृतः ||
कथा:-
भगवान् श्री गणेश का दूसरा अवतार एकदन्त का है । मदासुर नाम का एक बलवान और पराक्रमी दैत्य था वह च्यवन ऋषि का पुत्र था एक बार वह अपने पिता से आज्ञा लेकर दैत्यगुरु शुक्राचार्य के पास गया और समस्त ब्रह्माण्ड का स्वामी बनने की इच्छा प्रकट की शुक्राचा र्य ने मदासुर को अपना शिष्य बना लिया और शक्ति के एकाक्षरी मंत्र की विधि पूर्वक मदासुर को दीक्षा दी । मदासुर अपने गुरु से दीक्षा लेकर वन में चला गया और काफी वर्षों तक कठोर तपस्या करता रहा उसके शरीर में चींटीयों ने अपने घर बना लिए, दीमक ने अपनी बांबीयां बना ली, उसके चारो ओर वृक्ष उग आये । ऐसी तपस्या से माँ शक्ति प्रसन्न हुई और उसे निरोगी रहने तथा समस्त ब्रह्माण्ड का राज्य प्राप्त करने का वरदान दिया.
मदासुर ने पहले सम्पूर्ण धरती पर अपना साम्राज्य स्थापित किया । फिर स्वर्गपर चढ़ाई की । इन्द्रादि देवताओं को जीत कर वह स्वर्ग का भी शासक बन बैठा । उसने प्रमदासुर की कन्या सालसा से विवाह किया । उससे उसे तीन पुत्र हुए । उसने शूलपाणी भगवान शिव को भी पराजित कर दिया । सर्वत्र असुरों का क्रूरतम शासन चलने लगा । पृथ्वी पर समस्त धर्म – कर्म लुप्त हो गये । देवताओं एंव मुनियों के दू:ख की सीमा न रही । सर्वत्र हाहाकार मच गया ।
चिन्तित देवता सनत्कुमार के पास गये तथा उनसे उस असुर के विनाश एंव धर्म-स्थापना का उपाय पूछा । सनत्कुमार ने कहा -’देवगण आप लोग श्रद्धा-भक्तिपूर्वक भगवान एकदन्त की उपासना करें । वे संतुष्ट होकर अवश्य ही आप लोगों का मनोरथ पूर्ण करेंगे ‘। महर्षि के उपदेशानुसार देवगण एकदन्त की उपासना करने लगे । तपस्या के सौ वर्ष पूरे होने पर मूषक वाहन पर भगवान एकदन्त प्रकट हुए तथा वर माँगने के लिया कहा । देवताओं ने निवेदन किया – प्रभो ! मदासुर के शासन में देवगण स्थानभ्रष्ट और मुनिगण कर्मभ्रष्ट हो गये है । आप हमें इस कष्ट से मुक्ति दिलाकर अपनी भक्ति प्रदान करे ।
उधर देवर्षि ने मदासुर को सुचना दी की भगवान एकदन्त ने देवताओं को वरदान दिया है । अब वे तुम्हारा प्राण – हरण करने के लिये तुमसे युद्ध करना चाहते है । मदासुर अत्यन्त कुपित होकर अपनी विशाल सेना के साथ एकदन्त से युद्ध करने चला । भगवान एकदन्त रास्ते में ही प्रकट हो गये । राक्षसों ने देखा की भगवान एकदन्त सामने से चले आ रहे हैं । वह मूषक पर सवार हैं । उनकी आकृति अत्यन्त भयानक है । उनके हाथों मैं परशु, पाश आदि आयुध है । उन्होंने असुरों से कहा की तुम अपने स्वामी से कह दो यदि वह जीवित रहना चाहता है तो देवताओं से द्वेष छोड़ दे ।
उनका राज्य उन्हें वापस कर दे । अगर वह ऐसा नहीं करता है तो मैं निश्चिंत ही उसका वध करूँगा । महाक्रूर मदासुर युद्ध के लिए तैयार हो गया जैसे -ही उसने अपने धनुष पर बाण चढ़ाना चाहा की भगवान एकदन्त का तीव्र परशु उसे लगा और वह बेहोश होकर गिर गया ।
बेहोशी टूटने पर मदासुर समझ गया की यह सर्वसमर्थ परमात्मा ही है । उसने हाथ जोड़कर स्तुति करते हुए कहा की प्रभो ! आप मुझे क्षमा कर अपनी द्रढ़ भक्ति प्रदान करें । एकदन्त ने प्रसत्र होकर कहा कि जहाँ मेरी पूजा आराधना हो,वहाँ तुम कभी मत जाना । आज से तुम पाताल में रहोगे । देवता भी प्रसत्र होकर एकदन्त की स्तुति करके अपने लोक चले गये।
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