जाने कब है शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) और क्यों भक्तों के लिए बहुत विशेष है ?
शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima)
भारत ही एक ऐसा देश जहाँ त्यौहार की रौशनी हमेशा ही जगमगाती रहती है और ये हम सभी को विरासत(virasat) में मिला है। ये त्यौहार हमे ईश्वर से और एक दूसरे से जोड़ते है। और हमारे अंदर की आध्यात्मिक शक्ति को मजबूत करते है।
शरद पूर्णिमा हिन्दू कैलेंडर में सबसे प्रसिद्ध पूर्णिमा में से एक है। ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा(Sharad Purnima) वर्ष का एकमात्र दिन है जब चंद्रमा सभी सोलह कलाओं के साथ आता है। हिंदू धर्म में, प्रत्येक मानव गुणवत्ता कुछ कला से जुड़ी होती है और ऐसा माना जाता है कि सोलह विभिन्न कलाओं का संयोजन एक परिपूर्ण मानव व्यक्तित्व बनाता है। भगवान कृष्ण(krishna) का अवतार जो सभी सोलह कला के साथ अवतरित हुए थे। और वह भगवान विष्णु का पूर्ण अवतार थे। भगवान राम का जन्म केवल बारह कला के साथ हुआ था।
इसलिए, शरद पूर्णिमा के दिन भगवान चंद्र की पूजा करना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। शरद पूर्णिमा के दिन से उपवास शुरू करते हैं। गुजरात में, शरद पूर्णिमा को शरद पूनम के रूप में जाना जाता है। वहीं, खीर खाने से कई रोगों से मुक्ति मिलती है. इसीलिए आज खास तौर पर खीर बनाने की प्रथा है. इस दिन खीर बनाकर खुले आसमान में रखी जाती है इसके अलावा ऐसा भी माना जाता है आज के दिन मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था, इसीलिए कुछ लोग इनकी की पूजा करते हैं .
कब है शरद पूर्णिमा:- (Date and Time of Sharad Purnima):-
शरद पूर्णिमा का 16 अक्टूबर 2024 को है। जिसका शुभ मुहूर्त है।
शरद पूर्णिमा बुधवार, अक्टूबर 16, 2024 को
शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्रोदय – 05:05 पी एम
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – अक्टूबर 16, 2024 को 08:40 पी एम बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त – अक्टूबर 17, 2024 को 04:55 पी एम बजे
रात्रि में अमृत बरसता है:-
शरद पूर्णिमा को लेकर एक मान्यता यह भी है कि इस दिन रात में चंद्रमा की सभी किरणें अमृत बनकर पृथ्वी पर बरसती हैं। इसीलिए इस दिन खीर बनाकर खुले आसमान में रखने और सुबह उसे प्रसाद के रूप में खाने की परंपरा भी सदियों से चली आ रही है।
क्यों भक्तों के लिए बहुत विशेष है शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima):-
भगवान श्री कृष्ण(krishna) के जीवन से जुड़ी अद्भुत बातें है जो भक्तो को अपनी ओर खींचती है। शरद पूर्णिमा के दिन जब चंद्रमा सभी सोलह कलाओं के साथ आता है। और श्री कृष्ण भी सोलह कला के साथ अवतरित हुए थे। और यही वो दिन जिस दिन श्री कृष्ण ने गोपियों की मन की अभिलाषा पूरी की थी। क्युकी उन्होंने मन से अपना सब कुछ श्री कृष्ण के श्री चरणों में समर्पित कर दिया था। इस दिन को रास पूर्णिमा(Raas Purnima) के नाम से भी जानते है।
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कई क्षेत्रों में शरद पूर्णिमा को कोजागारा पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है जब पूरे दिन कोजागारा व्रत मनाया जाता है। कोजागारा व्रत को कौमुडी व्रत (कौमुदी व्रत) भी कहा जाता है।
लक्ष्मी जी की करें विशेष पूजा:-
शरद पूर्णिमा के दिन अगर आप अपने घर में माता लक्ष्मी की प्रतिमा को स्थापित करते हैं और घर में 101 दीपक जलाते हैं तो आपके घर से सभी नकारात्मक ऊर्जा दूर होगी और आप हमेशा सुखी और समृद्ध रहेंगे।
कोजागिरी पूजा-शरद पूर्णिमा पर करने के लिए चीजें:-
- देवी लक्ष्मी के कोजागिरी पूजा व्रत का पालन करें। ऐसी धारणा है कि लक्ष्मी जी अपने भक्तों को देखने के लिए पृथ्वी पर चक्कर लगाती हैं। उन्हें प्रसन्न करने के लिए लक्ष्मी चालीसा मंत्र का जाप करें।
- खीर (मीठे चावल का ) तैयार करें और इसे रात के लिए चांदनी में रखें। ऐसा माना जाता है कि चंद्रमा की किरणें इस दिन अमृत बरसाती हैं, जिसे खीर में स्थानांतरित किया जाता है। अगले दिन खीर का प्रसाद के रूप में सेवन करना अमृत पीने जैसा है।
- अच्छे पति की तलाश में अकेली महिलाओं को दिन में व्रत रखना चाहिए और चांद दिखने के बाद व्रत तोड़ना चाहिए। अच्छे वर की तलाश के लिए उन्हें भगवान कार्तिकेय की पूजा करनी चाहिए।
- शरद पूर्णिमा की पूरी रात जागरण या रात्रि जागरण किया जाता है। यह माना जाता है कि जो लोग आध्यात्मिक जागृति या किसी अन्य धार्मिक गतिविधियों में खुद को शामिल करते हैं, उन्हें भगवान इंद्र और मां लक्ष्मी का आशीर्वाद मिलेगा।
- कुछ दान में संलग्न हैं। यह आपकी क़ीमती चीज़ों को दे सकता है या ज़रूरतमंदों को भोजन और बुनियादी चीज़ों के साथ मदद कर सकता है, किसी भी तरह का दान मनुष्य को आनंद की अनुभूति देता है। और यह कहा जाता है कि जो लोग दूसरों की मदद करते हैं उन्हें देवताओं द्वारा मदद की जाएगी।
शरद पूर्णिमा के बारे में अधिक जाने:-
चंद्रमा, विशेष रूप से पूर्णिमा, भारतीय साहित्य, परंपराओं, रीति-रिवाजों, अनुष्ठानों और आम लोगों के जीवन में एक महान भूमिका निभाती है। महान संयोग से कई ऋषि, मुनि, संत, पैगंबर, देवी-देवता पूर्णिमा के दिन पैदा हुए थे। उदाहरण के लिए, महावीर और गौतम बुद्ध का जन्म पूर्णिमा के दिन हुआ था। बुद्ध की मृत्यु भी पूर्णिमा के दिन हुई थी।
उदाहरण के लिए, आज धन की देवी माता लक्ष्मी का जन्मदिन है। इसके अलावा, इस दिन शिव-पार्वती के सुंदर पुत्र और देवताओं के सेनापति कार्तिकेय का जन्म हुआ था। पूरे भारत में शारद पूर्णिमा को एक शुभ दिन माना जाता है। भारत के कई हिस्सों जैसे महाराष्ट्र, गुजरात, मिथिला और अन्य उत्तरी राज्यों में देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। लोग पूरी रात जागते हैं.
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं:-
मान्यता है कि संपूर्ण वर्ष में केवल इसी दिन चंद्रमा षोडश कलाओं का होता है। धर्मशास्त्रों में इस दिन ‘कोजागर व्रत’ माना गया है। इसी को ‘कौमुदी व्रत’ भी कहते हैं। रासोत्सव का यह दिन वास्तव में भगवान कृष्ण ने जगत की भलाई के लिए निर्धारित किया है, क्योंकि कहा जाता है इस रात्रि को चंद्रमा की किरणों से सुधा झरती है। इस दिन श्री कृष्ण को ‘कार्तिक स्नान’ करते समय स्वयं (कृष्ण) को पति रूप में प्राप्त करने की कामना से देवी पूजन करने वाली कुमारियों को चीर हरण के अवसर पर दिए वरदान की याद आई थी और उन्होंने मुरलीवादन करके यमुना के तट पर गोपियों के संग रास रचाया था। इस दिन मंदिरों में विशेष सेवा-पूजन किया जाता है।
कार्तिक का व्रत :-
धार्मिक मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा से ही स्नान और व्रत प्रारम्भ हो जाता है। माताएं अपनी संतान की मंगल कामना से देवी-देवताओं का पूजन करती हैं। इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के अत्यंत समीप आ जाता है। कार्तिक का व्रत भी शरद पूर्णिमा से ही प्रारम्भ होता है। विवाह होने के बाद पूर्णिमा (पूर्णमासी) के व्रत का नियम शरद पूर्णिमा से लेना चाहिए। शरद ऋतु में मौसम एकदम साफ़ रहता है। इस दिन आकाश में न तो बादल होते हैं। और न ही धूल-गुबार। इस रात्रि में भ्रमण और चंद्रकिरणों का शरीर पर पड़ना बहुत ही शुभ माना जाता है। प्रति पूर्णिमा को व्रत करने वाले इस दिन भी चंद्रमा का पूजन करके भोजन करते हैं। इस दिन शिव-पार्वती और कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है। यही पूर्णिमा कार्तिक स्नान के साथ, राधा-दामोदर पूजन व्रत धारण करने का भी दिन है।
शरद पूर्णिमा पूजा विधि :-
इस दिन प्रात: काल स्नान करके आराध्य देव को सुंदर वस्त्राभूषणों से सुशोभित करके आवाहन, आसान, आचमन, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, सुपारी, दक्षिणा आदि से उनका पूजन करना चाहिए।
रात्रि के समय गौदुग्ध (गाय के दूध) से बनी खीर में घी तथा चीनी मिलाकर अर्द्धरात्रि के समय भगवान को अर्पण (भोग लगाना) करना चाहिए।
पूर्ण चंद्रमा के आकाश के मध्य स्थित होने पर उनका पूजन करें तथा खीर का नैवेद्य अर्पण करके, रात को खीर से भरा बर्तन खुली चांदनी में रखकर दूसरे दिन उसका भोजन करें तथा सबको उसका प्रसाद दें।
पूर्णिमा का व्रत करके कथा सुनानी चाहिए। कथा सुनने से पहले एक लोटे में जल तथा गिलास में गेहूं, पत्ते के दोनों में रोली तथा चावल रखकर कलश की वंदना करके दक्षिणा चढ़ाए। फिर तिलक करने के बाद गेहूं के १३ दाने हाथ में लेकर कथा सुनें। फिर गेहूं के गिलास पर हाथ फेरकर मिश्राणी के पांव स्पर्श करके गेहूं का गिलास उन्हें दे दें। लोटे के जल का रात को चंद्रमा को अर्ध्य दें।
प्रार्थना के बाद ही खीर खानी चाहिए। शरद पूर्णिमा पर बनाई जाने वाली खीर सिर्फ एक स्वादिष्टता नहीं है। शास्त्रों के अनुसार यह दिव्य औषधि है। इसे गाय के दूध और गंगा जल से बनाया जाना चाहिए।
शरद पूर्णिमा की पूरी रात जागरण या रात्रि जागरण किया जाता है।
jai shri krishna