क्यों मनाते हैं महाशिवरात्रि(shivratri kyu manate hai)?
maha shivratri kab hai: चतुर्दशी तिथि आरंभ- इस वर्ष महाशिवरात्रि 11 मार्च 2021, गुरूवार के दिन मनाया जाएगा। इस दिन कई शुभ योग बन रहे हैं। यह तिथि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को आती है। इस दिन शिव योग बन रहा है। साथ ही इस दिन नक्षत्र घनिष्ठा रहेगा और चंद्रमा मकर राशि में विराजमान रहेगा। महाशिवरात्रि के दिन स्वयंभू शिवजी की पूजा की जाती है।
शिवरात्रि का अर्थ है:-
shivratri kyu manate hai वो जानने से पहले जाने की शिवरात्रि का अर्थ है;- वह रात्रि जिसका शिव तत्व के साथ घनिष्ठ संबंध है भगवान शिव जी की अति प्रिय रात्रि को शिवरात्रि का कहा गया है इसमें रात्रि भर जागरण और महादेव का अभिषेक का विधान है। इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती के साथ हुआ था। श्री पार्वती जी की जिज्ञासा पर भगवान शिव जी ने बताया कि फागुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी शिवरात्रि कहलाती है जो उस दिन उपवास करता है वह मुझे खुश कर लेता है
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि में चंद्रमा सूर्य के समीप होता है। उसी समय जीवन रूपी चंद्रमा का शिव रूपी सूर्य के साथ योग मिलन होता है इस चतुर्दशी को शिव पूजा करने से जीव को बहुत अच्छे फल की प्राप्ति होती है। यही शिवरात्रि का रहस्य है ambernath shiv mandir
पौराणिक कथा भी है। उसके अनुसार :-
भगवान विष्णु की नाभि से कमल निकला और उस पर ब्रह्माजी प्रकट हुए। ब्रह्माजी सृष्टि के सर्जक हैं और विष्णु पालक। दोनों में यह विवाद हुआ कि हम दोनों में श्रेष्ठ कौन है? उनका यह विवाद जब बढ़ने लगा तो तभी वहां एक अद्भुत ज्योतिर्लिग प्रकट हुआ। उस ज्योतिर्लिग को वे समझ नहीं सके और उन्होंने उसके छोर का पता लगाने का प्रयास किया, परंतु सफल नहीं हो पाए। जब दोनों निराश हो गए तब उस ज्योतिर्लिंग ने अपना परिचय देते हुए कहां कि मैं शिव हूं। मैंने ही आप दोनों को उत्पन्न किया है।
तब विष्णु तथा ब्रह्मा ने भगवान शिव की महत्ता को स्वीकार किया और उसी दिन से शिवलिंग की पूजा की जाने लगी। शिवलिंग का आकार दीपक की लौ की तरह लंबाकार है इसलिए इसे ज्योतिर्लिंग कहा जाता है।
शिव अर्धरात्रि में शिवलिंग रूप में प्रकट हुए :-
भगवान शिव अर्धरात्रि में शिवलिंग रूप में प्रकट हुए थे, इसलिए शिवरात्रि व्रत में अर्धरात्रि में रहने वाली चतुर्दशी ग्रहण करनी चाहिए। कुछ विद्वान प्रदोष व्यापिनी त्रयोदशी विद्धा चतुर्दशी शिवरात्रि व्रत में ग्रहण करते हैं। नारद संहिता में आया है कि जिस तिथि को अर्धरात्रि में फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी हो, उस दिन शिवरात्रि करने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। जिस दिन प्रदोष व अर्धरात्रि में चतुर्दशी हो, वह अति पुण्यदायिनी कही गई है।
यह काल वसंत ऋतु के वैभव के प्रकाशन का काल है। ऋतु परिवर्तन के साथ मन भी उल्लास व उमंगों से भरा होता है। यही काल कामदेव के विकास का है और कामजनित भावनाओं पर अंकुश भगवद् आराधना से ही संभव हो सकता है। भगवान शिव तो स्वयं काम निहंता हैं, अत: इस समय उनकी आराधना ही सर्वश्रेष्ठ है।
महाशिवरात्रि की एक और कथा:-
किसी समय वाराणसी के वन में एक भील रहता था। उसका नाम गुरुद्रुह था। वह वन्यप्राणियों का शिकार कर अपने परिवार का भरण-पोषण करता था। एक बार शिवरात्रि के दिन वह शिकार करने वन में गया। उस दिन उसे दिनभर कोई शिकार नहीं मिला रात होने पर उसे वन में एक झील दिखाई दी। सोचा यहीं पेड़ पर चढ़कर शिकार की राह देखता हूं। कोई न कोई प्राणी यहां पानी पीने आएगा। वह पानी का पात्र भरकर बिल्ववृक्ष पर चढ़ गया। उस वृक्ष के नीचे शिवलिंग स्थापित था।
थोड़ी देर बाद वहां एक हिरनी आई। गुरुद्रुह ने जैसे ही हिरनी को मारने के लिए धनुष पर तीर चढ़ाया तो बिल्ववृक्ष के पत्ते और जल शिवलिंग पर गिरे। इस प्रकार रात के प्रथम प्रहर में अंजाने में ही उसके द्वारा शिवलिंग की पूजा हो गई। तभी हिरनी ने उसे देख लिया और उससे पूछा कि तुम क्या चाहते हो। वह बोला कि तुम्हें मारकर मैं अपने परिवार का पालन करूंगा। यह सुनकर हिरनी बोली कि मेरे बच्चे मेरी राह देख रहे होंगे। मैं उन्हें अपनी बहन को सौंपकर लौट आऊंगी। हिरनी के ऐसा कहने पर शिकारी ने उसे छोड़ दिया।
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थोड़ी देर बाद उस हिरनी की बहन उसे खोजते हुए झील के पास आ गई। शिकारी ने उसे देखकर पुन: अपने धनुष पर तीर चढ़ाया। इस बार भी रात के दूसरे प्रहर में बिल्ववृक्ष के पत्ते व जल शिवलिंग पर गिरे और शिव की पूजा हो गई। उस हिरनी ने भी अपने बच्चों को सुरक्षित स्थान पर रखकर आने को कहा। शिकारी ने उसे भी जाने दिया। थोड़ी देर बाद वहां एक हिरन अपनी हिरनी को खोज में आया। इस बार भी वही सब हुआ और तीसरे प्रहर में भी शिवलिंग की पूजा हो गई। वह हिरन भी अपने बच्चों को सुरक्षित स्थान पर
छोड़कर आने की बात कहकर चला गया। जब वह तीनों हिरनी व हिरन मिले तो प्रतिज्ञाबद्ध होने के कारण तीनों शिकारी के पास आ गए। सबको एक साथ देखकर शिकारी बड़ा खुश हुआ और उसने फिर से अपने धनुष पर बाण चढ़ाया जिससे चौथे प्रहर में पुन: शिवलिंग की पूजा हो गई।
इस प्रकार गुरुद्रुह दिनभर भूखा-प्यासा रहकर वह रातभर जागता रहा और चारों प्रहर अंजाने में ही उससे शिव की पूजा हो गई और शिवरात्रि का व्रत संपन्न हो गया, जिसके प्रभाव से उसके पाप तत्काल भी भस्म हो गए। पुण्य उदय होते ही उसने सभी हिरनों को मारने का विचार त्याग दिया। तभी शिवलिंग से भगवान शंकर प्रकट हुए और उन्होंने गुरुद्रुह को वरदान दिया कि त्रेतायुग में भगवान राम तुम्हारे घर आएंगे और तुम्हारे साथ मित्रता करेंगे। तुम्हें मोक्ष भी प्राप्त होगा। इस प्रकार अंजाने में किए गए शिवरात्रि व्रत से भगवान शंकर ने शिकारी को मोक्ष प्रदान कर दिया।
शिव जी इतने दयालु है जिसने अनजाने में पूजा किया उसको फल दे दिया। जो संकलप लेकर करेगा शिवरात्रि में पूजा आराधना उनपे कितनी कृपा करेंगे।
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