क्यों Radha Ashtami इतनी खास है ?राधा अष्टमी के बारे में जाने सभी बातें
राधा अष्टमी (Radha Ashtami) के बारे में जाने सभी बातें
श्री राधा अष्टमी का पर्व भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। राधा अष्टमी (radha ashtami) को भगवान कृष्ण की आल्हादिनी शक्ति राधारानी के जन्म उत्सव के रूप में मनाया जाता है . श्री राधा रानी का जन्मदिन श्री कृष्ण के जन्म के 15 दिनों बाद मनाया जाता है। इसे राधाष्टमी और राधा जयंती के रूप में भी जाना जाता है। राधा रानी को प्रेम की देवी भी कहा जाता है प्रेममयी जीवन बनाने के लिए उनकी शरण में जाना जरुरी है। क्युकी विशुद्ध प्रेम की मूरत है राधा रानी। जिसके जीवन में धैर्य है उसके जीवन में विशुद्ध या निस्वार्थ प्रेम टिकता है। इस दिन राधा रानी चरण दर्शन भी होते हैं जो कि पूरे साल में केवल एक बार यानी राधा अष्टमी के दिन होते हैं .
कौन है श्री राधा रानी ? श्री राधा जी का अवतरण:–
कौन गा सकता है उस कृपा मई श्री जी( राधा रानी ) के बारे में जिनका एक बार नाम लेने से तन मन पावन और पवित्र हो जाता है। धन्य है वो गोपी ग्वाल संत ऋषि जिन्होंने सिर्फ नाम ही नहीं लिया बल्कि उनका दर्शन भी किया। आये जानते है सिर्फ राधा रानी (radha rani) के चरणों की धुल के कण जितनी बातें। Read More राधा रानी
राधा अष्टमी कब है और क्या है शुभ मुहर्त :-
इस वर्ष 2023 में राधा अष्टमी (Radha Ashtami 2022 Date) दिनांक 23 सितम्बर को पड़ रही है| पंचांग के अनुसार भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत 22 सितंबर 2023 को दोपहर 01 बजकर 35 मिनट पर हुई थी. अगले दिन 23 सितंबर 2023 को दोपहर 12 बजकर 17 मिनट पर इसका समापन होगा. इस दिन राधा जी की पूजा दोपहर में की जाती है.
दिन और तारीख : 23 September 2023
शुभ मुहूर्त (Radha Ashtami 2021 Subh Muhurat) :-
अष्टमी तिथि प्रारम्भ – 01:35 PM on Sep 22, 2023
अष्टमी तिथि समाप्त – 12:17 AM on Sep 23, 2023
राधा अष्टमी का महत्व (Radha Ashtami Ka Mahatva) :-
इस दिन व्रत का विशेष महत्व बताया गया है राधा जी और भगवान श्री कृष्ण के प्रेम( radha krishna prem ) से तो पूरी दुनिया परीचित है। राधाष्टमी के दिन श्रद्धालु बरसाना की ऊंची पहाड़ी पर स्थित गहवर वन की परिक्रमा करते हैं। कई दिनों से रात हो या दिन बरसाना में बहुत ज्यादा रौनक देखने को मिलती है। इसके साथ ही अलग-अलग तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रमों को आयोजन किया जाता है। राधाष्टमी का त्योहार धार्मिक/भक्ति गीतों और कीतर्न के साथ शुरू किया जाता है।
कहते है जो जन्माष्टमी का व्रत रखते है उनको राधा जी (राधा अष्टमी) के जन्मोत्सव पे व्रत जरूर रखना चाहिए तभी जन्माष्टमी व्रत का का पूर्ण फल मिलता है। उनके जीवन में प्रेम की प्राप्ति होती है साथ ही जो निर्मल मन से सिर्फ राधा अष्टमी की कथा सुनने से ही व्रत करने वाले व्यक्ति को धन, सुख समृद्धि, परिवारिक सुख और मान- सम्मान की प्राप्ति हो जाती है। राधा अष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण और राधा जी की पूजा की जाती है। श्री कृष्ण की पूजा के बिना राधा जी की पूजा अधूरी मानी जाती है। भारत के उत्तर प्रदेश में स्थित मथुरा, वृंदावन, बरसाना( barsana ), रावल और मांट के मंदिरों में राधा अष्टमी को त्योहार के रूप में मनाया जाता .
राधाष्टमी पूजा विधि :
राधाष्टमी के दिन शुद्ध मन से व्रत का पालन किया जाता है. इस दिन ब्रम्ह मुहर्त में उठना चाहिए। इस दिन राधा जी की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराते हैं जिसके बाद उनका श्रृंगार किया जाता है। इस दिन राधा जी की सोने या किसी दूसरी धातु से बनी सुंदर प्रतिमा को विग्रह में स्थापित किया जाता है। या आपके पास बल गोपाल हो तो उनका श्रृंगार राधा रानी के रूप में कर सकते है। क्युकी वो दो नहीं एक है। दोपहर के समय भक्ती और श्रद्धा के साथ राधा जी की आराधना की जाती है। धूप-दीप से आरती के बाद राधाजी को भोग लगाया जाता है। कई ग्रंथों में राधाष्टमी के दिन राधा-कृष्णा की संयुक्त रूप से पूजन की बात कही गई है।
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श्री राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र सुन तुरंत राधा जी कृपा करती है :
श्रीराधा कृपाकटाक्ष स्तोत्र(radha kripa kataksh stotra) का गायन वृन्दावन के विभिन्न मन्दिरों में नित्य किया जाता है। इस स्तोत्र के पाठ से साधक नित्यनिकुंजेश्वरि श्रीराधा और उनके प्राणवल्लभ नित्यनिकुंजेश्वर ब्रजेन्द्रनन्दन श्रीकृष्ण की सुर-मुनि दुर्लभ कृपाप्रसाद अनायास ही प्राप्त कर लेता है
इस दिन जो व्यक्ति सच्चे मन और श्रद्धा से राधा जी की आराधना करता है उसे अपने जीवन में सभी प्रकार के सुख साधनों की प्राप्ति होती है उनके जीवन में प्रेम की प्राप्ति होती है और उसे अपने जीवन में किसी प्रकार की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता। इस दिन राधा रानी चरण दर्शन भी होते हैं जो कि पूरे साल में केवल एक बार यानी राधा अष्टमी के दिन होते हैं .
राधा जी के मंत्र (Radha Ji Ke Mantra)
1.ॐ ह्रीं श्रीराधिकायै नम:।
2.ॐ ह्रीं श्रीराधिकायै विद्महे गान्धर्विकायै विधीमहि तन्नो राधा प्रचोदयात्।
3.श्री राधा विजयते नमः
4. श्री राधाकृष्णाय नम:
राधा अष्टमी की कथा (Radha Ashtami Ki Katha):
पद्मपुराण के अनुसार राधा जी को वृषभानु की पुत्री बताया गया है। इस ग्रंथ के अनुसार जब राजा यज्ञ के लिए भूमि को साफ कर रहे थे। तब भूमि कन्या के रूप में इन्हें राधा जी की प्राप्ति हुई थी। राजा ने इस कन्या को अपनी पुत्री मानकर लालन पालन किया। वृषभानु ने उस कन्या का नाम राधा रखा। जिस समय भगवान श्री कृष्ण का जन्मदिन मनाया जा रहा था। तब राधा जी की माता महारानी कीर्ति राधा जी को लेकर गोकुल नंद और यशोदा के यहां पहुंची थी। उस समय भगवान श्री कृष्ण उस समय अपने झूले में झूल रहे थे और राधा जी और भगवान श्री कृष्ण एक दूसरे को बड़ी गोर से देख रहे थे।
पुराणों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण और राधा जी उम्र में 11 महिने का अंतर माना जाता है। जिस समय भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। उस समय राधा जी 11 महिने की हो चुकी थी। द्वापर युग में भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण और माता लक्ष्मी ने राधा जी के रूप में जन्म लिया था। भगवान श्री कृष्ण और राधा जी का विवाह नहीं हो सका था। लेकिन फिर भी इन्हें एक साथ ही पूजा जाता है। माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण के बिना राधा जी अधूरी हैं और राधा जी के बिना भगवान श्री कृष्ण इसलिए राधा अष्टमी पर भगवान श्री कृष्ण की पूजा होती है।
श्रीराधा चालीसा में कहा गया है–
राधा त्यागि कृष्ण को भजि हैं।
ते सपनेहु जग जलधि न तरि हैं।।
कीरति कुंवरि लाड़िली राधा।
सुमिरत सकल मिटहिं भव बाधा।।
नाम अमंगल मूल नसावन।
त्रिविध ताप हर हरि मन भावन।।
राधा नाम लेइ जो कोई।
सहजहिं दामोदर वश होई।।
श्रीराधा की उपासना दो प्रकार से होती है–एक, मन्त्रजप, स्तोत्र, कवच, सहस्त्रनाम का पाठ, पूजन-हवन आदि द्वारा; दूसरी, रसिकभक्तों की रीति नाममहामन्त्र का लगातार जप करना। यह केवल भावात्मक उपासना है और इस तरह की उपासना गोपीभाव से ही सिद्ध होती है।
radha ashtami mantra – श्री राधा अष्टमी मंत्र राधा जी के दिव्य मंत्र को पढ़े
राधा जी की आरती (Radha Ji Ki Aarti) :-
आरती श्री वृषभानुसुता की |
मंजु मूर्ति मोहन ममताकी || टेक ||
त्रिविध तापयुत संसृति नाशिनि
विमल विवेकविराग विकासिनि |
पावन प्रभु पद प्रीति प्रकाशिनि,
सुन्दरतम छवि सुन्दरता की ||
मुनि मन मोहन मोहन मोहनि,
मधुर मनोहर मूरती सोहनि |
अविरलप्रेम अमिय रस दोहनि,
प्रिय अति सदा सखी ललिताकी ||
संतत सेव्य सत मुनि जनकी,
आकर अमित दिव्यगुन गनकी,
आकर्षिणी कृष्ण तन मनकी,
अति अमूल्य सम्पति समता की ||
कृष्णात्मिका, कृषण सहचारिणि,
चिन्मयवृन्दा विपिन विहारिणि |
जगज्जननि जग दुःखनिवारिणि,
आदि अनादिशक्ति विभुताकी ||
श्री राधा रानी के प्राकट्य उत्सव के रूप में मानते है।
श्री कृष्णा जन्माष्टमी के 15 दिन बाद आता है।
राधा अष्टमी युगल सरकार के सम्पूर्ण रूप में मनाया जाता है। इस दिन राधा कृष्ण की एक साथ आराधना की जाता है।
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