रुक्मिणी जी की तुलना में भगवान कृष्ण को श्री राधा के साथ अधिक बार क्यों पूजा जाता है?
कृष्ण और राधा के अमर-निस्वार्थ प्रेम को बचपन से हमें बताया गया है। श्री राधा कृष्ण ने सच्चे निष्काम प्रेम की सीख सभी को सीखने के लिए ये पात्र निभाया। राधा कृष्णा साक्षात् भगवान थे लेकिन उन्होंने त्याग और समर्पण की पराकष्ठा का अद्भुत प्रमाण दिया है। प्रेम का सच्चा स्वरुप बताया है।
वो एक समय के बाद कभी मिल नहीं पाए लेकिन अपने अंतर्मन के प्रेम से सारे संसार में प्रकाश फैला दिया। श्री कृष्णा ने कर्म पथ पे कई शादियाँ की जिनको किसी ने नहीं अपनाया उसको श्री कृष्णा ने अपनया क्युकी वो साक्षात् ब्रह्म थे। और हर असहाय जीव और जो उनको पूर्ण समर्पण करता है। उनको वो हर युग में अपनाते है। वो जगत पति है। संसार में हम दो ही स्वरुप में देखते है स्त्री और पुरुष सम्बन्ध लेकिन भगवान जगत पति(रक्षक) है जो रक्षा का स्वरुप है। भगवान स्त्री और पुरुष देख कर करुणा नहीं करते। उनकी करुणा, प्रेम पृथ्वी पे हर एक जीव पर सामान है। जिसने ह्रदय से अपना पूर्ण समर्पण उनके चरणों में किया हुआ है। हर पहर उनके रक्षक है श्री कृष्णा।
पत्नियों में प्रसिद्ध रुक्मिणी को देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है, और फिर भी राधा कृष्ण अधिक प्रसिद्ध हैं और पूरे विश्व में उनकी पूजा की जाती है। ऐसा क्यों है?
रुक्मिणी( Devi Rukmani ):-
रुक्मिणी को देवी लक्ष्मी का अवतार कहा जाता है। रुक्मिणी को कृष्ण की भक्ति पत्नी के रूप में पूरी तरह से चित्रित किया गया है, जो कृष्ण की कहानियों को सुनकर प्रेम में पड़ गई और कृष्णा से मिले या बिना देखे उससे शादी करने के लिए सहमत हो गई।
श्री राधा (Shri Radha):-
राधा को भौतिक रूप में अस्तित्व में नहीं कहा गया है; राधा स्वयं भगवान कृष्ण की चेतना के शुद्ध आनंद का प्रतिनिधित्व करती हैं।
श्री राधा और श्री कृष्णा एक ही है। देवी भागवत पुराण के अनुसार, भगवान कृष्ण की भौंहों के बीच केंद्र से आदि पराशक्ति (योग माया) का जन्म हुआ था। उसी योग माया ने खुद को दो भागों में विभाजित किया, दायां हिस्सा राधा (या चेतना और हर जीवित प्राणी की आत्मा का प्रतिनिधित्व करता है) बन गया और बाएं भाग लक्ष्मी बन गया (जो पदार्थ और दुनिया का प्रतिनिधित्व करता है)
अगर हम वैदिक संस्करण में चिंतन करेंगे तो – राधा और कृष्ण के रूप में संसार देखता है। राधा ईश्वर का स्त्री पक्ष है। वे ऊर्जावान और प्रेम रूप में एक हैं। राधा कृष्ण की आनंद की ऊर्जा है, जिसका अर्थ है कि दुनिया में जो सभी आनंद, आध्यात्मिक। निस्वार्थ प्रेम आनंद राधारानी या उनकी विकृति, दायां हिस्सा राधा से आते हैं।
इसलिए रुक्मिणी जी की तुलना में भगवान कृष्ण को श्री राधा के साथ अधिक बार पूजा जाता है दायां हिस्सा राधा (या चेतना और हर जीवित प्राणी की आत्मा का प्रतिनिधित्व करता है) और बाएं भाग लक्ष्मी बन गया (जो पदार्थ और दुनिया का प्रतिनिधित्व करता है) .
भगवान कभी भी सांसारिक भैतिकता को अतीक महत्व नहीं देते उनका सम्बन्ध तो चेतना और हर जीवित प्राणी की आत्मा निस्वार्थ प्रेम , आनंद से है। जो हर एक जीव का सच्चा स्वरुप है। सांसारिक वास्तु जीवन व्यापन करने के लिए मिला है और जीवन तो सिर्फ आत्मा के सच्चे स्वरुप प्रेम आनंद भक्ति प्रभु स्वरुप भगवान के लिए मिला है।
हम सबको भी हमेशा अपना मन श्री राधे की तरह निर्मल रखना चाहिए क्युकी प्रेम हम सबका स्वरुप है सबका हित करना चाहिए हम सबको। आप अपने आप इस संसार में सम्मान पाने लग जायेंगे। आपको सब मिलेगा जब आपका मन निष्काम से भर जायेगा।
मध्य-मध्य काल में भी जब राधा का उल्लेख किया जाता है, तो उन्हें निस्वार्थ प्रेम के प्रतीक के रूप में चित्रित किया जाता है, जिस प्रेम को कोई सीमा नहीं माना जाता है। यह भक्ति ही है जिसने कृष्ण को अपनी सुंदर बांसुरी बजाने के लिए खींच लिया, और यह वही भक्ति है जिसने राधा को रास लीला के लिए प्रेरित किया, खुद को भूल गया। यह प्रेम, यह भक्ति, यह कर्म, प्रार्थना के रूप में शुद्ध, मौन ध्यान, जो राधा को दिव्य बनाता है, यह वही है जो भक्त को भगवान में बदल देता है। राधा-कृष्ण आदि काल से कविता, नाटक और लोकगीतों का हिस्सा रहे हैं। तो दुनिया प्रेम और भक्ति के बंधन का उत्सव मनाने के लिए राधा की पूजा करती है, सच्चाई को महसूस करने के रास्तों में से एक है।
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