तुलसी कृष्ण प्रेयसी!

तुलसी कृष्ण प्रेयसी!

वृंदा(तुलसी कृष्ण प्रिया)

जिस घर में तुलसी होती हैं, वहां यम के दूत भी असमय नहीं जा सकते। गंगा व नर्मदा के जल में स्नान तथा तुलसी का पूजन बराबर माना जाता है। चाहे मनुष्य कितना भी पापी क्यों न हो, मृत्यु के समय जिसके प्राण मंजरी रहित तुलसी और गंगा जल मुख में रखकर निकल जाते हैं, वह पापों से मुक्त होकर वैकुंठ धाम को प्राप्त होता है। जो मनुष्य तुलसी व आवलों की छाया में अपने पितरों का श्राद्ध करता है, उसके पितर मोक्ष को प्राप्त हो जाते हैं। story of tulsi ji

तुलसी जी की प्रार्थना:-

श्री तुलसी प्रणाम मंत्र…

वृन्दायै तुलसीदेव्यै प्रियायै केशवस्य च। कृष्णभक्ती – प्रदे देवि, सत्य वत्यै नमो नम: ।।

20171014_200451-BlendCollage.jpg

तुलसी वन्दना🙏😇

नमो नमः तुलसी कृष्ण प्रेयसी! राधा कृष्ण सेवा पाबो एइ अभिलाषी।।  नमो नमः तुलसी कृष्ण प्रेयसी!

हे कृष्ण प्रिया तुलसी महारानी मै आपको बार बार प्रणाम करती हूँ। सदा श्री राधा कृष्ण की सेवा पाऊँ ऐसी अभिलाषा रखती हूँ।

जे तोमार शरण लय, तार वाञ्छा पुर्ण हय।
कृपा करि’ करो तारे वृन्दावन वासी ।।😢
 
chanting-japa
जो आपकी शरण लेता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। हे तुलसी महारानी कृपा करके हमे भी वृन्दावन वासी बना दीजिये।🙏😢 मेरी आपके चरणों में यही प्राथना यही अभिलाषा है कि आप इस दास को भी श्री वृन्दावन धाम के कुंजों में वास दे। ये आँखे सदा युगल छवि का दर्शन पाती रहे क्योंकि आँखों की सार्थकता प्रिया प्रीतम के दर्शनों में है।😍😍
मोर एइ अभिलाष, विलासकुञ्जे दिओ वास।
नयने हेरिब सदा युगल – रुप – राशि ।।
 
एइ निवेदन धर सखीर अनुगत करो ।।
सेवा अधिकार दिये करो निज दासी ।।
 
rasa-lila-satchitananda-das
 
 
दासी का आपके चरणों में निवेदन है कि मुझे ब्रजगोपियों की अनुचरी बना दीजिये तथा सेवा का अधिकार देकर मुझे अपनी दासी बना लीजिए।🙏🌺❤
दीन कृष्णदासे कय एइ येन मोर हय ।
श्रीराधा गोविन्द प्रेमे सदा येन भासि ।।
यह अति दीन कृष्ण दासी आपसे प्रार्थना करती है, कि मै सदा सर्वदा श्री राधा गोविन्द के प्रेम में निमग्न रहूँ।🙏😇

तुलसी महारानी के कहानी :-

पौराणिक काल में एक थी स्त्री नाम था वृंदा। राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था। वृंदा बचपन से ही भगवान विष्णु जी की परम भक्त थी। बड़े ही प्रेम से भगवान की पूजा किया करती थी। जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जलंधर से हो गया,जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था। वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी सदा अपने पति की सेवा किया करती थी।

एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा -स्वामी आप युद्ध पर जा रहे हैं आप जब तक युद्ध में रहेगें में पूजा में बैठकर आपकी जीत के लिए अनुष्ठान करुंगी,और जब तक आप वापस नहीं आ जाते मैं अपना संकल्प नही छोडूगीं।जलंधर तो युद्ध में चले गए और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गई। उनके व्रत के प्रभाव से देवता भी जलंधर को ना जीत सके सारे देवता जब हारने लगे तो भगवान विष्णु जी के पास गए।

सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि-वृंदा मेरी परम भक्त है मैं उसके साथ छल नहीं कर सकता पर देवता बोले – भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते हैं।

ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है?

भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा और वृंदा के महल में पहुंच गए जैसे ही वृंदा ने अपने पति को देखा,वे तुरंत पूजा में  से उठ गई और उनके चरण छू लिए। जैसे ही उनका संकल्प टूटा,युद्ध में देवताओं  ने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काटकर अलग कर दिया। उनका सिर वृंदा के महल में गिरा जब वृंदा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पड़ा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है?

न्होंने पूछा – आप कौन हैं जिसका स्पर्श मैंने किया,तब भगवान अपने रूप में आ गए पर वे कुछ ना बोल सके,वृंदा सारी बात समझ गई। उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया आप पत्थर के हो जाओ,भगवान तुंरत पत्थर के हो गए। सभी देवता हाहाकार करने लगे। लक्ष्मी जी रोने लगीं और प्राथना करने लगीं तब वृंदा जी ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर वे सती हो गई।

वृंदा कैसे बनी तुलसी :-

उनकी राख से एक पौधा निकला तब भगवान विष्णु जी ने कहा- आज से इनका नाम तुलसी है,और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जाएगा और मैं बिना तुलसी जी के प्रसाद स्वीकार नहीं करुंगा। तब से तुलसी जी की पूजा सभी करने लगे और तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में किया जाता है। देवउठनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है।

‎‏तुलसी कंठी धारण करने की महिमा :-

वृंदा, वृन्दावनी,विश्वपुजिता, विश्वपावनी |

पुष्पसारा,नंदिनी च तुलसी,कृष्णजीवनी | |

तुलसी भगवान कृष्ण को अति प्रिय है🙏🌿बिना तुलसी दल अर्पण किये प्रभु भोग नही अरोगते। तुलसी कोई साधारण नही है, गोपियों ने रास पंचध्याय में कहा है तुलसी कल्याण करने वाली है और गोविन्द के चरणों की प्रिया है।

Also read:- वृंदा कैसे बनी तुलसी-तुलसी जी का विवाह

जीव मात्र का कल्याण करने का सामर्थ्य तुलसी जी में है। व्यास जी ने पद्मपुराण में कहा है की तुलसी को छूकर जब जल शरीर पर पड़ता है तो सभी तीर्थों में स्नान का फल प्राप्त हो जाता है। भोजन करते वक्त अगर तुलसी कंठ में हो तो एक एक कण में अश्वमेघ यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है। बहुत सी माताओं की धारणा होती है, मन में संशय होता है कि सौभाग्यवती स्त्रियों को तुलसी कंठी धारण करनी चाहिए या नही? ऐसा कदापि नही है.. बिना संकोच तुलसी धारण करनी चाहिए। संतो ने कहा है जैसे तुलसी दल पधराने से भगवान को भोग लगता है वैसे ही हम सब भगवान के भोग्य है🙏जब कोई सतगुरु हमे तुलसी धारण कराते है तो हम भगवान के भोग के काबिल बन जाते है🙏😇और ठाकुुुर जी हमे स्वीकार करते है। तुलसी को श्री राधा रानी का ही स्वरूप माना गया है🙏❤

गले में तुलसी की माला धारण करने से जीवनीशक्ति बढ़ती है, बहुत से रोगों से मुक्ति मिलती है। शरीर निर्मल, रोगमुक्त व सात्त्विक बनता है।

श्री राधे!

श्री हरिदास!!

जय गुरुदेव🙏🌺

Leave your comment
Comment
Name
Email