क्या है श्री विघ्नराज गणेश जी की कथा क्यों उनको पूजा जाता है?
भगवान् श्री गणेश का सप्तम अवतार विघ्नराज का है जिसके सम्बन्ध में एक श्लोक मिलता है जो इस प्रकार है –
विघ्नराजावताराश्च शेषवाहन उच्येत |
ममतासुर हन्ता स विष्णुब्रह्मेति वाचकः ||
भगवान् श्री गणेश का सप्तम विघ्नराज का है जो विष्णु ब्रह्म का धारक है, यह शेषनाग पर विराजमान है । श्री गणेश का यह अवतार ममतासुर का वध करने वाला है)
कथा:- एक बार माँ पार्वती अपनी सखिओं से बात बात करते हुए जोर से हस पड़ीं । उनकी इस हसीं से एक पुरुष का जन्म हुआ पार्वती जी ने उस पुरुष का नाम ममतासुर रखा और उसे गणेश जी के षडक्षर मंत्र का ज्ञान दिया और आदेश दिया की तुम गणेश की भक्ति करो उसी से तुम्हे सब कुछ प्राप्त होगा । ममतासुर तप करने वन में चला गया वहां उसकी अन्य दैत्यों से भेंट हुई उन दैत्यों ने ममतासुर ने समस्त प्रकार की आसुरी शक्तियों को भलीभांति सीख लिया तत्पश्चात माँ की आज्ञानुसार ममतासुर गणेश जी की भक्ति लीन हो गया ।
सह्श्रो वर्षो तक तप करने के पश्चात गणेश जी प्रकट हुए तब ममतासुर ने गणेश जी से समस्त ब्रह्माण्ड का राज्य तथा युद्ध में आने वाले समस्त विघ्नों के न आने का वरदान माँगा । गणेश जी ने कहा की ये बहुत दुसाध्य वर माँगा है परन्तु मै तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूँ इसीलिए ये वर मै तुम्हे प्रदान अवश्य करूँगा । तथास्तु कह कर श्री गणेश अंतर्ध्यान हो गये ।
तपस्या पूर्ण होने के पश्चात ममतासुर अपने मित्र शम्बर से मिला समाचार सुन कर शम्बर बहुत प्रसन्न हुआ । शुक्राचार्य ने ममतासुर को दैत्यराज घोषित कर दिया तथा शम्बर की पुत्री से उसका विवाह करवा दिया । कुछ समय पश्चात ममतासुर ने विश्वविजय की घोषणा कर दी और समस्त पृथ्वी पर आक्रमण करके इसकी शुरुआत भी कर दी । ममतासुर ने पृथ्वी तथा पाताल दोनों लोको को जीत लिया । फिर स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया । जल्द ही स्वर्ग भी ममतासुर के अधीन हो गया ।
शिवलोक, विष्णुलोक, ब्रह्मलोक सब बलशाली असुर के अधीन हो गए । चारो तरफ हा हा कार मच गया धर्म कर्म सब नष्ट हो ने लगा देवी देवता अपने स्थानों से विश्तापिथों की तरह दर दर भटकने लगे । यज्ञ एवं अनुष्ठान सब नष्ट भ्रष्ट हो गया ।
सभी देवताओं ने इस विपत्ति के समाधान हेतु श्री विघ्नराज की उपासना की । कठोर तपस्या के पश्चात श्री विघ्नराज प्रकट हुए । सभी देवी देवताओं ने श्री विघ्नराज से ममतासुर के अत्याचारों से मुक्ति तथा धर्म के उद्धार के लिए प्रार्थना की । श्री विघ्नराज ने सभी देवी देवताओं को चिंतामुक्त होने का आश्वासन दिया तथा श्री नारद को अपना दूत बनाकर ममतासुर के पास भेजा ।
नारद ने ममतासुर से कहा की तुम अत्याचार और अधर्म का मार्ग छोड़ कर विघ्नराज श्री गणेश की शरण में आ जाओ अन्यथा तुम्हारा सर्वनाश निश्चित है । शुक्राचार्य ने भी ममतासुर को यही यही समझाया की विघ्नराज से वैर करना उचित नहीं परन्तु घमण्डी मुर्ख असुर कदापि न माना और उसकी इस मुर्खता से श्री विघ्नराज क्रोधित हो गए । विघ्नराज ने अपना पुष्प कमल असुर सेना में छोड़ दिया उसकी गंध से समस्त असुर सेना मुर्छित और शक्तिहीन हो गई तब ममतासुर पत्ते की भांति थर थर कांपने लगा और श्री विघ्नराज के चरणों में गिर गया । उनकी स्तुति करने लगा उनसे क्षमा याचना करने लगा । दयालु श्री विघ्नराज ने ममतासुर को क्षमा कर दिया और शांत एवं सहज जीवन जीने के लिए पाताल भेज दिया । इस प्रकार एक बार पुनः धर्म की स्थापना हुई और चारो तरलगी फ श्री विघ्नराज गणेश की जय जयकार होने लगी ।
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