युगलकिशोराष्टक (Yugal Kishor Ashtakam )

युगलकिशोराष्टक (Yugal Kishor Ashtakam )

श्रीरूपगोस्वामीजी श्रीचैतन्य महाप्रभुजी के प्रधान अनुयायी व गौडीय वैष्णव सम्प्रदाय के प्रकाण्ड विद्वान थे । रूप और सनातन गोस्वामी बंगाल राज्य में उच्च पद पर आसीन थे किन्तु राज्य और ऐश्वर्य से मन हटाकर, परम वैराग्य धारण कर उन्होंने वृन्दावन में वास किया और श्रीमद्भागवत के अनुसार युगलसरकार की उपासना की श्रृंगार रस की पद्धति को अपनाया ।

‘युगलकिशोराष्टक’(Yugal Kishor Ashtakam) श्रीरूपगोस्वामीजी द्वारा श्रीराधाकृष्ण की संयुक्त उपासना के लिए आठ पदों में रचा गया बहुत सुन्दर स्तोत्र (अष्टक) है । युगलकिशोर का अर्थ है—श्रीराधाकृष्ण जिनकी नवीन किशोरावस्था है । इस स्तोत्र में उन्होंने युगलकिशोर के सुन्दर श्रृंगार व स्वरूप का वर्णन किया है—

श्रीयुगलकिशोराष्टकम्

श्रीमद्रूपगोस्वामिविरचितम् ।
नवजलधरविद्युद्योतवर्णौ प्रसन्नौ
वदननयनपद्मौ चारुचन्द्रावतंसौ ।
अलकतिलकफालौ केशवेशप्रफुल्लौ
भज भज तु मनो रे राधिकाकृष्णचन्द्रौ ॥ १॥

अर्थ—जिनका रंग नवीन जल भरे मेघ और विद्युत की छटा के समान है, जिनके मुख पर सदा प्रसन्नता छायी रहती है, जिनके मुख और नेत्र खिले कमल के समान हैं, जिनके मस्तक पर मयूरपिच्छ का मुकुट (श्रीकृष्ण) और सोने की चन्द्रिका (श्रीराधा) है, जिनके माथे पर सुन्दर तिलक लगा है और अलकावली बिखरी हुई हैं और जो सुन्दर केश रचना के कारण फूले-फूले से लगते हैं, अरे मेरे मन ! तू उन श्रीराधा और श्रीकृष्ण का ही निरन्तर भजन किया कर ।

वसनहरितनीलौ चन्दनालेपनाङ्गौ
मणिमरकतदीप्तौ स्वर्णमालाप्रयुक्तौ ।
कनकवलयहस्तौ रासनाट्यप्रसक्तौ
भज भज तु मनो रे राधिकाकृष्णचन्द्रौ ॥ २॥

अर्थ—जिनके श्रीअंगों पर पीले और नीले वस्त्र शोभायमान हैं, श्रीविग्रह पर चंदन लगा हुआ है, जिनके शरीर की कांति मरकतमणि और सोने के समान है, जिनके वक्ष पर सोने के हार और हाथों में सोने के कंगन चमक रहे हैं और जो रासलीला में संलग्न हैं, अरे मेरे मन ! तू उन श्रीबृषभानुकिशोरी और श्रीश्यामसुन्दर का ही निरन्तर भजन किया कर ।

अतिमतिहरवेशौ रङ्गभङ्गीत्रिभङ्गौ
मधुरमृदुलहास्यौ कुण्डलाकीर्णकर्णौ ।
नटवरवररम्यौ नृत्यगीतानुरक्तौ
भज भज तु मनो रे राधिकाकृष्णचन्द्रौ ॥ ३॥

अर्थ—जिन्होंने अत्यन्त मधुर और सुन्दर वेष बना रखा है, जो अत्यन्त सुन्दर त्रिभंगी मुद्रा में खड़े हैं और मधुर हंसी हंस रहे हैं, जिन्होंने कानों में कुण्डल और कर्णफूल पहने हैं, जो श्रेष्ठ नट और नटी के रूप में सुशोभित हैं, जो नृत्य और गीत के परम अनुरागी हैं, अरे मेरे मन ! तू उन श्रीराधिका और श्रीकृष्ण का ही निरन्तर भजन किया कर ।

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विविधगुणविदग्धौ वन्दनीयौ सुवेशौ
मणिमयमकराद्यैः शोभिताङ्गौ स्फुरन्तौ ।
स्मितनमितकटाक्षौ धर्मकर्मप्रदत्तौ
भज भज तु मनो रे राधिकाकृष्णचन्द्रौ ॥ ४॥

अर्थ—जो विभिन्न गुणों से भूषित और सदा वंदन के योग्य हैं, जिन्होंने अत्यन्त सुन्दर वेष धारण कर रखा है, जिनके अंगों पर मणिमय मकराकृत कुण्डल और अन्य आभूषण हैं, जिनके शरीर से सुन्दर कांति निकल रही है, नेत्रों में हंसी खेल रही है और जो हमारे धर्म-कर्म के कारण हमें प्राप्त हुए हैं, अरे मेरे मन ! तू उन श्रीराधा और श्रीनन्दनंदन में ही सदा तल्लीन रह ।

कनकमुकुटचूडौ पुष्पितोद्भूषिताङ्गौ
सकलवननिविष्टौ सुन्दरानन्दपुञ्जौ ।
चरणकमलदिव्यौ देवदेवादिसेव्यौ
भज भज तु मनो रे राधिकाकृष्णचन्द्रौ ॥ ५॥

अर्थ—जो मस्तक पर सोने का मुकुट और सोने की ही चन्द्रिका धारण किए हुए हैं, जिनके अंग फूलों के श्रृंगार और विभिन्न प्रकार के आभूषणों से विभूषित हैं, जो व्रज के वनों में विभिन्न प्रकार की लीलाएं रचते रहते हैं, जो सुन्दरता और आनन्द के मूर्तरूप हैं, जिनके चरण कमल अत्यन्त दिव्य हैं और जो महादेवजी के भी आराध्य हैं, अरे मेरे मन ! तू उन श्रीराधा और श्रीकृष्ण का ही निरन्तर चिन्तन किया कर ।

अतिसुवलितगात्रौ गन्धमाल्यैर्विराजौ
कति कति रमणीनां सेव्यमानौ सुवेशौ ।
मुनिसुरगणभाव्यौ वेदशास्त्रादिविज्ञौ
भज भज तु मनो रे राधिकाकृष्णचन्द्रौ ॥ ६॥

अर्थ—जिनके अंगों का संचालन अत्यन्त सुन्दर है और श्रीअंग पर सुगन्धित लेप लगे हैं, जो नाना प्रकार के पुष्पों की मालाओं से सजे हैं, अनगिनत व्रजबालाएं जिनकी सेवा में सदैव लगी रहती हैं, जिनका वेश अत्यन्त मनमोहक है, बड़े-बड़े देवता और मुनिगण भी जिनका ध्यान में ही दर्शन कर पाते हैं, जो वेदों के महान पंडित हैं, अरे मेरे मन ! तू उन कीर्तिकुमारी और यशोदानंदन का ही निरन्तर ध्यान किया कर ।

अतिसुमधुरमूर्तौ दुष्टदर्पप्रशान्तौ
सुखरसवरदौ द्वौ सर्वसिद्धिप्रदानौ ।
अतिरसवशमग्नौ गीतवाद्यैर्वितानौ
भज भज तु मनो रे राधिकाकृष्णचन्द्रौ ॥ ७॥

अर्थ—जिनका श्रीविग्रह अत्यन्त मधुर है, जो दुष्टों के दर्प को चूर्ण करने में अत्यन्त कुशल हैं, जो बड़े-बड़े देवताओं को भी वर देने की सामर्थ्य रखते हैं और सभी सिद्धियों को देने वाले हैं, जो परस्पर प्रेम के वश होकर आनंद में मग्न रहते हैं और गायन-वादन करते रहते हैं, अरे मेरे मन ! तू उन श्रीराधा और श्रीकृष्ण की ही निरन्तर भावना किया कर ।

अगमनिगमसारौ सृष्टिसंहारकारौ
वयसि नवकिशोरौ नित्यवृन्दावनस्थौ ।
शमनभयविनाशौ पापिनस्तारयन्तौ
भज भज तु मनो रे राधिकाकृष्णचन्द्रौ ॥ ८॥

अर्थ—जो अगम्य वेदों के सारभूत हैं, सृष्टि और संहार जिनकी लीलाएं हैं, जो सदा नवीन किशोरावस्था में रहते हैं, वृन्दावन में ही जिनका नित्य निवास है, जो यमराज के भय का नाश करने वाले और पापियों को भी भवसागर से तार देने वाले हैं, अरे मेरे मन ! तू उन श्रीराधा और श्रीकृष्ण का ही निरन्तर भजता रह ।

इदं मनोहरं स्तोत्रं श्रद्धया यः पठेन्नरः ।
राधिकाकृष्णचन्द्रौ च सिद्धिदौ नात्र संशयः ॥ ९॥

अर्थ—इस मनोहर स्तोत्र का जो कोई मनुष्य श्रद्धापूर्वक पाठ करेगा, उसके मनोरथ को श्रीराधाकृष्ण अवश्य पूर्ण करेंगे ।

वैष्णव के लिए अत्यंत पावन भाद्रपद मास:-

वैष्णवों के लिए भाद्रपद मास अत्यन्त ही पावन महीना होता है। जिसमें कृष्णपक्ष की अष्टमी को उनके आराध्य श्यामतेज श्रीकृष्ण की जयन्ती मनाई जाती है और शुक्ल पक्ष की अष्टमी को श्रीकृष्ण की आराध्या गौरतेज श्रीराधा का जन्म महोत्सव मनाया जाता है । अत: यह मास श्रीराधाकृष्ण की भक्ति में सराबोर रहने और युगलसरकार का कृपा कटाक्ष प्राप्त करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है ।

युगलकिशोर युगलसरकार और युगलछवि:-

‘युगलकिशोर’, ‘युगलसरकार’ या ‘युगलछवि’—ये नाम भगवान श्रीराधाकृष्ण को संयुक्त रूप से वंदन करते समय लिये जाते हैं । युगल शब्द जोड़ा व युग्म (couple) के लिए प्रयोग किया जाता है । श्रीराधा और श्रीकृष्ण एक ही ज्योति के दो रूप हैं । जो श्रीकृष्ण हैं, वही श्रीराधा हैं और जो श्रीराधा हैं, वही श्रीकृष्ण हैं; श्रीराधा-माधव के रूप में एक ही ज्योति दो प्रकार से प्रकट है, जैसे शरीर अपनी छाया से शोभित हो ।

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  • kirtik

    kirtik

    मई 13, 2022

    🙏राधे राधे 🙏
    🙏जय श्री राधेकृष्णा 🙏

    • hamari virasat

      hamari virasat

      मई 13, 2022

      radhe radhe

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